भारतीय बैंक अधिकारियों ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अधिकारियों को सूचित किया है कि उन्होंने कॉरपोरेट ऋण पुनर्गठन योजना के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से अगस्त 2008 में जारी परिपत्र के अनुरूप दिवालिया कंपनी एबीजी शिपयार्ड के ऋण के एक हिस्से को इक्विटी में बदला था।
सीबीआई ने पिछले सप्ताह आईसीआईसीआई बैंक के शीर्ष अधिकारियों से पूछताछ की थी। जांच एजेंसी आगामी सप्ताह के दौरान अन्य सरकारी बैंकों के अधिकारियों से इस संबंध में पूछताछ कर सकती है। सीबीआई यह समझने की कोशिश कर रही है कि एबीजी द्वारा ऋण की अदायगी में चूक किए जाने के बावजूद बैंकों ने कंपनी में ऋण जोखिम क्यों बढ़ाया।
आईसीआईसीआई बैंक ने इस बाबत जानकारी के लिए भेजे गए ईमेल का कोई जवाब नहीं दिया।
बैंक अधिकारियों के अनुसार, इस खाते को 2014 में कॉरपोरेट ऋण पुनर्गठन प्रकोष्ठ के पास भेज दिया गया था। बैंकों ने एबीजी शिपयार्ड के लिए उपचारात्मक कार्य योजना तैयार करने के लिए एक संयुक्त लेनदार फोरम का गठन किया था ताकि उस खाते का समाधान हो सके। लेकिन बैंकरों ने कहा कि एबीजी ने संतोषजनक तरीके से प्रदर्शन नहीं किया और उसकी वित्तीय स्थिति और खराब हो गई जो सीडीआर योजना के तहत निर्धारित मानदंडों का उल्लंघन था। उसके बाद संयुक्त लेनदार फोरम ने आरबीआई की ओर से 8 जून, 2015 को जारी परिपत्र के अनुसार रणनीतिक ऋण पुनर्गठन के प्रावधानों का उपयोग करते हुए ऋण के एक हिस्से को कंपनी में 51 फीसदी हिस्सेदारी से बदल दिया।
उसी साल लेनदारों ने कंपनी की तात्कालिक परिचालन एवं पूंजीगत व्यय संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए 31 मार्च, 2016 तक 551 करोड़ रुपये का एक अन्य ऋण प्राथमिकता के आधार पर दिया था। उस साल कंपनी ने 37.76 करोड़ रुपये के परिचालन राजस्व पर 3,704 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा दर्ज किया था।
जुलाई 2017 में कंपनी को ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालियापन संहिता 2016 के तहत ऋण पुनर्गठन के लिए भेजा गया था लेकिन उसके लिए कोई खरीदार नहीं मिल पाया। प्रबंधन परामर्श एवं ऑडिट फर्म अन्स्र्ट ऐंड यंग द्वारा फोरेंसिक ऑडिट किए जाने के बाद 2019 में इस खाते को धोखाधड़ी वाला खाता करार दिया गया था। फोरेंसिक ऑडिट में खुलासा हुआ था कि कंपनी के अधिकारियों ने 2012 से 2017 के बीच रकम हस्तांतरित की थी।
उद्योग सूत्रों ने कहा कि जहाज विनिर्माण उद्योग मंदी से जूझ रहा था और इसलिए एबीजी शिपयार्ड बैंकों से मिली रकम का उपयोग अपनी छोटी लेकिन कुशल क्षमता तैयार करने में कर सकती थी। इसके साथ ही वह अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी प्रतिष्ठा को दोबारा स्थापित कर सकती थी और इस प्रकार उसे सरकारी ऑर्डरों पर अधिक निर्भर नहीं रहना पड़ता। ऋषि अग्रवाल की अध्यक्षता में बोर्ड में बैंकों के नामित व्यक्तियों और स्वतंत्र निदेशकों को भी शामिल किया गया था।
इस मामले के एक करीबी व्यक्ति ने कहा, ‘शिपयार्ड में चाहे एबीजी हो अथवा रिलायंस नेवल ऐंड इंजीनियरिंग अथवा भारती डिफेंस ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर, सामान्य तौर पर सभी को वैश्विक आर्थिक संकट के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा। हालांकि एबीजी शिपयार्ड को अंतरराष्ट्रीय ऑर्डर हासिल करने पर रकम खर्च करनी चाहिए था। उसकी क्षमता अच्छी थी लेकिन यदि उसका ऋण बोझ और ब्याज की रकम कम होनी चाहिए थी। इसके साथ ही उसकी प्रतिस्पर्धात्मकता में भी धीरे-धीरे कमी आई।’
कंपनी ने एस्सार समूह द्वारा संचालित इस्पात एवं शिपिंग कंपनियों से कारोबार हासिल करने पर भी अधिक भरोसा किया। एस्सार के इस्पात कारोबार को भी ऋण समाधान के लिए नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) भेज दिया गया था। इससे एबीजी शिपयार्ड के ऑर्डर काफी प्रभावित हो गए।
