वित्तीय संकट और सरकारी प्रावधानों में आए बदलाव के साथ कदमताल नहीं मिला सकने की वजह से पिछले एक साल के दौरान करीब 1,000 छोटी दवा कंपनियों पर ताला जड़ चुका है।
इसकी वजह से करीब 1 लाख लोगों के सामने रोजगार पर संकट खड़ा हो गया है। सूत्रों के मुताबिक, कर छूट की आस में करीब इतनी ही संख्या में कंपनियां महाराष्ट्र से बाहर चली गई हैं।
कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्रीज (सीआईपीआई) के चेयरमैन टी.एस.जयशंकर ने बताया कि संकट से जूझ रही 2,000 से 2,500 कंपनियां बंदी की कगार पर पहुंच चुकी हैं। जिसकी वजह से करीब पांच से छह लाख कर्मचारियों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि तीन साल पहले भारत में करीब 7,500 से 8,000 दवा इकाइयां थीं, जिसमें कुल दवा खपत का करीब 30 फीसदी उत्पादन होता था। इनमें से करीब 40 फीसदी छोटी दवा कंपनियों पर पिछले तीन सालों के दौरान ताला जड़ चुका है, क्योंकि ये कंपनियां निर्माण मानदंडों को पूरा करने में सक्षम नहीं हो पाईं।
नेशनल प्रोडक्टिविटी काउंसिल की हालिया सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2005 से सरकार ने भारतीय कंपनियों के लिए जीएमपी मानदंड अनिवार्य कर दिया है। यही वजह है कि ज्यादातर छोटी इकाइयां इस मानदंड को पूरा नहीं कर पाईं।
गुजरात स्टेट बोर्ड ऑफ इंडियन ड्रग मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के पूर्व चेयरमैन दीपक पडिया का कहना है कि गुजरात में पहले करीब 2,000 इकाइयां थीं, लेकिन इसकी संख्या अब काफी घट गई है। यही नहीं, जो इकाइयां खुली हैं, उनमें से भी 90 फीसदी में काम नहीं हो रहा है, क्योंकि उन्हें ऑर्डर नहीं मिल पा रहा है।
मध्य प्रदेश स्मॉल स्केल फार्मास्यूटिकल मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष जेपी अग्रवाल ने बताया कि 5 साल पहले राज्य में करीब 500 इकाइयां थीं, लेकिन अब केवल 135 इकाइयां ही रह गई हैं।
उन्होंने बताया कि कर छूट के लाभ में राज्य से अन्य जगहों पर करीब 1,000 इकाइयां स्थानांतरित हो गई हैं, जबकि शेष 50 फीसदी कंपनियां आर्डर नहीं मिलने से काम बंद किए बैठी है। डब्ल्यूएचओ-जीएमपी के नियमों के मुताबिक अब सरकार उन्हीं कंपनियों से दवाइयां खरीदती हैं, जिनका सालाना कारोबार कम से कम 20 करोड़ रुपये का हो। ऐसे में छोटी इकाइयां सरकारी टेंडर में हिस्सा नहीं ले पाती हैं।
पिछले एक साल में 1,000 दवा इकाइयों पर लटका ताला
मंदी और सरकारी मानदंडों से तालमेल नहीं बिठा पा रहीं छोटी इकाइयां
करीब एक लाख लोगों के सामने रोजगार का संकट