पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने का बकाया राजनीतिक रूप से संवेदनशील मसला बना हुआ है, ऐसे में नीति आयोग के साथ मिलकर केंद्र सरकार ने मूल्य स्थिरीकरण कोष बनाने की व्यवस्था पर काम करना शुरू कर दिया है। यह कोष कम मूल्य की स्थिति में गन्ना उत्पाादकों को मुआवजे की भरपाई करने में काम आएगा। साथ ही रिकवरी के स्तर के आधार पर राजस्व साझेदारी के सी रंगराजन के फार्मूले में भी बदलाव किया जाएगा।
औसत रिकवरी दर से ज्यादा गुणवत्ता वाले गन्नेे का उत्पादन करने वालों को प्रोत्साहित करने के लिए भी फॉर्मूला तैयार किया जाएगा और चरणबद्धव तरीके से गन्ने के भुगतान के कार्यक्रम पर भी विचार किया जाएगा। रिकवरी दर चीनी की वह मात्रा है, जो गन्ने से प्राप्त होती है। अगर गन्ने से ज्यादा चीनी बनती है तो इसके लिए बाजार में बेहतर कीमत मिलनी चाहिए।
सूत्रों ने कहा कि चीनी क्षेत्र के विभिन्न मसलों पर विचार के लिए बनी समिति की पहली बैठक कुछ समय पहले हुई थी। इस बैठक में मूल्य स्थिरीकरण कोष के आकार एवं ढांचे पर चर्चा हुई और इस क्षेत्र से संबंधित अन्य मंत्रालयों से भी विचार लिए गए। साथ ही इसमें किस्तों में भुगतान सहित किसानों को गन्ने के मूल्य के भुगतान के तरीकों पर भी चर्चा की गई। समिति में कृषि, खाद्य, वाणिज्य, वित्त, पेट्रोलियम मंत्रालय, नीति आयोग और राज्यों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
मूल्य स्थिरीकरण कोष के बारे में सूत्रों ने कहा कि इस तरह के कोष से उचित एवं लाभकारी मूल्य और राजस्व साझा फॉर्मूले के तहत चीनी मिलों की देनदारी के बीच अंतर की भरपाई की जा सकेगी। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि जिस साल चीनी व उत्पादों की कीमत लाभकारी नहीं होगी, किसानों को तकलीफ नहीं उठानी पड़ेगी और न ही मिलों को नुकसान उठाना पड़ेगा।
इसके बारे में विस्तार से बताते हुए उद्योग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 2020-21 चीनी सत्र के लिए के लिए गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 10 प्रतिशत रिकवरी के आधार पर 285 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है, जबकि अगर राजस्व हिस्सेदारी फॉर्मूला लगाया जाए, जैसा कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद में रहे सी रंगराजन ने सुझाव दिया था, तो एफआरपी देनदारी कहीं बहुत कम होगी क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से चीनी के दाम में बढ़ोतरी नहीं हुई है।
बहरहाल कम एफआरपी की स्थिति में किसानों को नुकसान न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में विशेष मूल्य स्थिरीकरण कोष बनाने की सिफारिश की है। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने भी अपनी पहले की रिपोर्टों में इस तरह के स्थिरीकरण कोष की सिफारिश की है। सूत्रों ने कहा कि फंड को लेकर रखी गई अपनी राय में कृषि मंत्रालय का कहना था कि इसमें डब्ल्यूटीओ समझौतों पर असर का द्यान रखा जाना चाहिए और चीनी के अंतिम मूल्य को भी संज्ञान में रखा जाना चाहिए।
बहरहला अभी इस बात को लेकर स्पष्टता नहीं है कि प्रस्तावित कोष का वित्तपोषण किस तरह से होगा।
पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के कार्यकाल में सी रंगराजन द्वारा सिफारिश किए गए राजस्व साझा फार्मूले में सुझाव दिया गया है कि गन्ने का मूल्य तय करते समय चीनी और उसके उप उत्पादों की बिक्री से आने वाले 70 प्रतिशत राजस्व और अगर केवल चीनी के राजस्व के आधार पर गन्ने के दाम की गणना की जाती है तो इसके 75 प्रतिशत राजस्व को ध्यान में रखकर दाम तय किया जाना चाहिए।
नीति आयोग ने इस क्षेत्र के लिए पिछले साल पेश की गई अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि राजस्व साझा फॉर्मूला में बदलाव किए जाने की जरूरत है, जो चीनी व उपउत्पादों के दाम का 75 प्रतिशत और सिर्फ चीनी से आने वाले राजस्व का 80 प्रतिशत किया जाना चाहिए क्योंकि हर साल रिकवरी दरों में सुधार हो रहा है। आयोग ने कहा है, ‘पिछले कुछ साल में रिकवरी दरों में सुधार को ध्यान में रखते हुए गन्ने के दाम में बढ़ोतरी की जा सकती है, जो रंगराजन समिति की सिफारिश के बाद से अब तक हुआ है। इस तरह से चीनी व उसके उपउत्पादों के दाम के 70 प्रतिशत और सिर्फ चीनी से राजस्व के 75 प्रतिशत के आधार की जगह मूल्य तय करने का फॉर्मूला चीनी व उप उत्पादों के राजस्व के 75 प्रतिशत और चीनी के मूल्य के 80 प्रतिशत के आधार पर मूल्य फॉर्मूला तय किया जा सकता है।’ इसमें कहा गया है कि यह फॉर्मूला चीनी सत्र 2020-21 या 2021-22 से लागू किया जा सकता है।
