वायदा बाजार में भले ही खाद्य तेलों की कीमत थोड़ी मजबूत नजर आ रही हो लेकिन दिल्ली समेत देश के कई थोक बाजारों में खाद्य तेलों की धार अब पतली होती नजर आ रही है।
पिछले एक महीने के मुकाबले मंगलवार को खाद्य तेलों की कीमतों में प्रति किलो 7 से 31 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है। तेलों की धार के पतले होने से तेल कारोबारी बिकवाली कम करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें अब तेल में तेजी का इंतजार है। हालांकि बाजार विशेषज्ञों के मुताबिक आने वाले दिनों में तेल की कीमतों में तेजी के कोई आसार नहीं हैं।
खाद्य तेल बाजार सूत्रों के मुताबिक, गत 5 मार्च के मुकाबले इस महीने तेल के भाव में 5 रुपये से लेकर 20 रुपये प्रति किलो तक की गिरावट दर्ज की गई। गत 5 मार्च को सरसों तेल की कीमत 71 रुपये प्रति किलो थी, जो 8 अप्रैल को घटकर 56 रुपये प्रति किलो हो गई। इसी तरह गत 5 मार्च को सोयाबीन तेल 73 रुपये प्रति किलो के स्तर पर था, जो गिरकर 8 अप्रैल को 57 रुपये किलो के स्तर पर आ गया।
आयात शुल्क में कटौती के बाद मूंगफली तेल में सबसे कम गिरावट दर्ज की गई है। पिछले एक महीने के दौरान मूंगफली तेल की कीमत में मात्र 5 रुपये प्रति किलो की गिरावट दर्ज की गई। मूंगफली तेल, जिसकी कीमत गत 5 मार्च को 75 रुपये प्रति किलो थी, 8 अप्रैल को गिरकर 70 रुपये प्रति किलो के पास देखी गई। पामोलीन तेल में 20 रुपये प्रति किलो तक की गिरावट आ गई है।
गत 5 मार्च को इसकी कीमत 65 रुपये प्रति किलो थी, जो मंगलवार को 45 रुपये प्रति किलो के स्तर पर आ गई। बिनौला तेल की कीमत पिछले एक महीने के दौरान 71 रुपये प्रति किलो से गिरकर 58 रुपये प्रति किलो पर आ गई है।
थोक कारोबारियों का कहना है कि ऐसा नहीं है कि विदेशों में खाद्य तेलों के भाव में कमी नहीं दर्ज की गई है। विदेशों में भी इन दिनों तेल में गिरावट जारी है। मलयेशिया और अन्य विदेशी बाजारों में क्रूड पामऑयल (सीपीओ) की कीमत गत 5 मार्च को 1400 डॉलर प्रति टन के स्तर पर थी, जो 5 अप्रैल को गिरकर 1100 डॉलर प्रति टन के स्तर पर देखी गई।
वैसे ही सोयाबीन डिगम की कीमतों में एक महीने के दौरान 450 डॉलर प्रति टन की गिरावट देखी गई। विदेशी बाजार में गत 5 मार्च को सोयाबीन डिगम की कीमत 1700 डॉलर प्रति टन थी, जो 1250 डॉलर प्रति टन के स्तर पर आ गई।
तेलों में मंदी के रुख से तेल व्यापारी बिकवाली से बचने की कोशिश कर रहे हैं। दिल्ली वेजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन का कहना है कि कीमत में एक सीमा तक कमी से जरूर मांग अधिक निकलती है और अधिक मात्रा में खरीदारी होती है। लेकिन जब बहुत अधिक गिरावट हो जाती है तो, जैसा कि अभी के तेल बाजार में चल रहा है, खरीदार और गिरावट का इंतजार करते हैं।
दूसरी तरफ बाजार में तेलों के भौतिक स्टॉक में कोई कमी नहीं है। व्यापारी बिकवाली के लिए तेल के भाव में बढ़ोतरी का इंतजार कर रहे हैं तो खरीदार और अधिक गिरावट की। दोनों ही तरफ से व्यापारियों को नुकसान हो रहा है।
तेल बाजार में इस बात की भी चर्चा है कि इस साल तिलहन भी बहुत मजबूत स्तर पर नहीं रहेगी। क्योंकि जब तेल की कीमत में तेजी रहती है तभी तिलहन की कीमत भी तेज होती है। इस कारण इस साल तिलहन की पैदावार करने वाले किसानों को भी घाटे का सामना करना पड़ सकता है। भारत में तेल की कुल खपत 120 लाख टन है जबकि खाद्य तेलों का उत्पादन मात्र 62 लाख टन है। बाकी मात्रा की पूर्ति आयात के जरिए की जाती है।