देश के केंद्रीय पूल में गेहूं की मात्रा बहुत कम हो गई है और 1 जुलाई को करीब उतना ही गेहूं बचा था, जितना कामकाज के लिए जरूरी बफर स्टॉक और आवश्यक भंडार में होना चाहिए। 2021-22 के फसल विपणन वर्ष में गेहूं का उत्पादन गिरना तथा खरीद कम रहना इसकी वजह हैं।
मगर इस दौरान चावल की मात्रा बफर और आवश्यक भंडार के निर्धारित पैमाने से बहुत अधिक (134 फीसदी अधिक) थी। आम तौर पर 1 जुलाई को गेहूं का भंडार सबसे अधिक रहता है क्योंकि इससे पहले के तीन महीनों यानी अप्रैल, मई और जून में इसकी खरीद होती है।
ताजा आंकड़े बताते हैं कि 1 जुलाई, 2022 को केंद्रीय पूल में करीब 285.1 लाख टन गेहूं था। इस तारीख को बफर और आवश्यक भंडार के रूप में कम से कम 275.8 लाख टन गेहूं होना चाहिए मगर कुल मात्रा इससे केवल 10 लाख टन अधिक है।
इससे पहले 2008 में इस तारीख पर केंद्रीय पूल में गेहूं की मात्रा इससे कम थी। उस साल 1 जुलाई को केवल 249.1 लाख टन गेहूं था। आंकड़ों से पता चलता है कि 1 जुलाई 2015 को भंडारण के नियमों में बदलाव के बाद पहली बार 1 जुलाई को गेहूं की मात्रा बफर और आवश्यक भंडार के इतने करीब रही है।
इसके उलट इस महीने की पहली तारीख को केंद्रीय पूल में करीब 315 लाख टन चावल होने का अनुमान है, जो 135 लाख टन के जरूरी भंडार से बहुत अधिक है। इसमें मिल मालिकों के पास पड़ा करीब 231.5 लाख टन बिना कुटा धान शामिल नहीं है, जो 2015 के बाद सबसे अधिक है।
केंद्रीय पूल में शामिल होने का मतलब है कि सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और अन्य कार्यक्रमों के लिए 155.1 लाख टन अतिरिक्त चावल उपलब्ध हो जाएगा।
आंकड़ों से पता चलता है कि 1 जुलाई को भारत के पास 833.6 लाख टन खाद्यान्न (गेहूं एवं चावल) था, जो पिछले तीन साल यानी 2019 से सबसे कम है। इसमें मोटे अनाज शामिल नहीं हैं, जिनका भंडार बहुत कम होता है।
चालू वित्त वर्ष में केंद्र की गेहूं खरीद पिछले वित्त वर्ष की तुलना में करीब 59 फीसदी घटकर 187.8 लाख टन रह गई क्योंकि किसानों ने ऊंचे दाम के फेर में सरकारी खरीद व्यवस्था के बजाय निजी कारोबारियों को फसल बेच दी। साथ ही गेहूं का कुल उत्पादन भी कम रहा।
तीसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक जून में खत्म फसल सीजन 2021-22 में 1064.1 लाख टन गेहूं होगा। पिछले साल के मुकाबले यह 38 लाख टन कम होगा और 1,113.2 लाख टन के पिछले अनुमान के मुकाबले 4.39 फीसदी कम रहेगा। गेहूं की फसल बढ़ने के लिए अहम माने जाने वाले समय में अधिक तापमान के कारण उत्पादन प्रभावित हुआ है।
कई कारोबारियों और बाजार पर नजर रखने वालों ने कहा कि गेहूं का भंडार कम रहने से सार्वजनिक वितरण तथा अन्य जरूरतों के लिए आपूर्ति सुनिश्चित करने में चावल का ज्यादा इस्तेमाल हो सकता है। उनके मुताबिक शायद इसी वजह से सरकार निर्यात पर रोक लगाने के बाद खुले बाजार में गेहूं की बड़े पैमाने पर बिक्री करने की इच्छुक नहीं होगी।
