काली मिर्च के प्रमुख उत्पादक केंद्र जैसे केरल में मौसम की अनियमितता के कारण फसल के आकार के इस समय थोड़े कम होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
हालांकि, इस साल फसल के आकार को लेकर सर्वसम्मति नहीं बन पाई है क्योंकि विभिन्न सूत्र 45,000 टन से 52,000 टन के कुल उत्पादन का अनुमान लगा रहे हैं। कई कारोबारियों, निर्यातकों और विशेषज्ञों का मत है कि कुल उत्पादन 48,000 टन से 50,000 टन के दायरे में होगा।
विभिन्न आकलनों के मुताबिक कुल उत्पादन में 10 से 20 प्रतिशत की कमी आएगी। विलंबित कटाई को लेकर सभी सहमत है और काली मिर्च की पर्याप्त मात्रा में आवक मध्य-जनवरी से ही शुरू हो सकती है। नई फसल की थेड़ी-बहुत आवक अगले महीने से शुरू हो जाएगी लेकिन केरल में जनवरी के शुरुआत में फसल की कटाई शीर्ष पर होगी।
कटाई देर से शुरू होने की मुख्य वजह विलंबित मॉनसून है। इससे यह भी आशंका जताई जा रही है कि केरल और तमिलनाडु में काली मिर्च का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। केरल परंपरागत तौर पर भारत का सबसे बड़ा काली मिर्च उत्पादक राज्य है और यहां कुल 20,000 टन काली मिर्च का उत्पादन होगा।
यहां पर औसतन 25,000-26,000 टन काली मिर्च का उत्पादन होता है। बुरे मौसम की वजह से सबसे ज्यादा केरल का मिर्च उत्पादन प्रभावित हो रहा है। उम्मीद की जा रही है कि इस बार पिछले मौसम की तरह ही तमिलनाडु में 5000 टन काली मिर्च का उत्पादन होगा।
कर्नाटक में इस बार पहली बार केरल से ज्यादा काली मिर्च का उत्पादन होने की संभावना है। अगर नारियल की खेती शुरू हो जाती है, तो केरल के नाम सबसे ज्यादा काली मिर्च के उत्पादन का खिताब छिन भी सकता है। अभी तमिलनाडु में नारियल का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है और केरल उसी पर अभी तक निर्भर रहता है।
कर्नाटक के कृषि विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, राज्य में इस बार 22,000 से 25,000 टन उत्पादन होगा। पिछले साल कर्नाटक में 17,000 टन का उत्पादन हुआ था। आक्रामक रोपण और अच्छे मौसम के वजह से कर्नाटक में इसका उत्पादन इस बार सबसे ज्यादा होने की उम्मीद है। अगर ऐसा होता है, तो देश के इतिहास में पहली बार सबसे ज्यादा उत्पादन हस्तांतरित होगा।
हालांकि काली मिर्च अभी बाजार में नहीं आया है। अभी निर्यातक कमोडिटी एक्सचेंज में स्टॉक में रखे काली मिर्च से ही कारोबार कर रहे हैं। अगले कुछ सप्ताह में भारतीय निर्यातक के लिए मुश्किल समय आ रहा है और ऐसा माना जा रहा है कि वे डिफॉल्टर हो सकते हैं। वैसे भारतीय निर्यातकों का डिफॉल्टर होने का इतिहास नहीं रहा है।