इस महीने की शुरुआत में इजाफे के बाद कारोबार खंड में इस्पात के दाम कमजोर हुए हैं। इस्पात के अंतरराष्ट्रीय दामों और कच्चे माल की कीमतों में कमी की वजह से ऐसा हुआ है। लेकिन कंपनियों का मानना है कि यह कुछ ही वक्त की दिक्कत है और आगे चलकर धारणा जोर पकड़ेगी।
स्टीलमिंट के आंकड़ों के मुताबिक 5 नवंबर को कारोबारी खंड की रीबार (लंबे इस्पात) के दाम 62,000 रुपये प्रति टन थे और 19 नवंबर को दाम गिरकर 60,300 रुपये प्रति टन रह गए। इस्पात की चादरों में हॉट-रोल्ड कॉइल (एचआरसी) अधिक स्थिर थी। 3 नवंबर को इसके दाम 71,600 रुपये प्रति टन और 17 नवंबर को 71,000 रुपये प्रति टन थे।
इस्पात के लंबे उत्पादों में दो-तिहाई योगदान करने वाले और इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस (ईएएफ) तथा इंडक्शन फर्नेस (आईएफ) का उपयोग करने वाले द्वितीयक उत्पादकों ने दामों में कमी की है। नवंबर की शुरुआत में आईएफ-दर्जे वाले उत्पादों के दाम मुंबई के बाहर 52,800 रुपये प्रति टन थे और 25 नवंबर को 48,900 रुपये प्रति टन थे।
एक द्वितीयक उत्पादक ने कहा ‘चीन में धारणा कमजोर है और घरेलू मांग में तेजी की उम्मीद के अनुरूप नहीं है।’ इस्पात की चादरों का इस्तेमाल आम तौर पर वाहन और घरेलू उपकरण बनाने के लिए किया जाता है तथा इस्पात के लंबे उत्पादों का प्रयोग मुख्य रूप से निर्माण और रेलवे के लिए किया जाता है।
इस्पात की कीमतों में नरमी की कई वजह हैं। जिंदल स्टील ऐंड पावर (जेएसपीएल) के प्रबंध निदेशक वीआर शर्मा ने कहा कि रीबार की कीमतों में नरमी आई है। उन्होंने कहा कि एवरग्रांड संकट के कारण निर्यात बाजार में बहुत ही कम मांग है तथा कम निर्यात ने घरेलू बाजार में उपलब्धता बढ़ा दी है।
हालांकि घरेलू बाजार में एचआरसी अधिक स्थिर है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय कीमतों में शीर्ष स्तर की तुलना में सुधार हुआ है।
इक्रा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष जयंत रॉय ने बताया कि चीन के इस्पात निर्यात की कीमतें मई में करीब 1,080 डॉलर प्रति टन के शीर्ष स्तर पर थीं और अब करीब 800 डॉलर प्रति टन पर चल रही हैं। अमेरिका और यूरोप में भी दाम शीर्ष स्तर से नीचे आ चुके हैं।
