पिछले चार हफ्तों में डॉलर के मुकाबले रुपये में आयी तेज गिरावट के चलते कुछ दिनों पहले सरकार द्वारा महत्वपूर्ण जिंसों के आयात शुल्क में की गई कटौती का असर फीका हो गया है।
अभी अप्रैल में ही सरकार ने महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए खाद्य तेलों, कोयले, न्यूजप्रिंट समेत कई चीजों के आयात शुल्क में कटौती कर दी थी। सरकार ने ढेरों जिंसों के आयात शुल्क में कटौती करते समय घोषणा की थी कि न्यूजप्रिंट के आयात शुल्क में भी 3 से 5 फीसदी की कमी की जा रही है। पर डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी आने से सरकार का यह कदम अब फीका पड़ चुका है।
पिछले एक महीने के दौरान ही न्यूजप्रिंट के दाम में लगभग 9 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है। मालूम हो कि देश के आधे से अधिक न्यूजप्रिंट आयातित ही होते हैं। डॉलर के हिसाब से सस्ता होने के बावाजूद कच्चे पॉम ऑयल में थोड़ी तेजी आयी है। यह तब की स्थिति है जब सरकार ने आयात शुल्क को 45 फीसदी से शून्य फीसदी कर दिया था।
उल्लेखनीय है कि देश की कुल खाद्य तेल जरूरत का लगभग 45 फीसदी आयात से ही पूरा होता है। पिछले 20 अप्रैल से अब तक डॉलर की तुलना में रुपये में 6.55 फीसदी की कमजोरी आ चुकी है और फिलहाल एक डॉलर का भाव 42.60 रुपये तक जा पहुंचा है। एक समय डॉलर की खरीद करने वाले भारतीय रिजर्व बैंक ने रुपये में मजबूती के दौर को लंबे समय तक खींच जाने के कारण मार्च में लगभग 1.5 अरब डॉलर की मुद्रा को बाजार में बेचा है।
29 अप्रैल को वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने घोषणा की थी कि इस्पात तैयार करने में कच्ची सामग्री के तौर पर इस्तेमाल होने वाले कोयले, लौह अयस्क और जस्ते पर 5 फीसदी के आयात शुल्क की राहत दी जाएगी। यही नहीं इस्पात उत्पाद पर लगने वाले 5 फीसदी के आयात शुल्क को सरकार ने शून्य फीसदी करने की घोषण की थी। घर बनाने में इस्तेमाल होने वाले सामानों जैसे टीएमटी सरिया आदि पर लगने वाले 14 फीसदी काउंटर वेलिंग डयूटी से राहत दी थी।
एक इस्पात कंपनी के अधिकारी ने बताया कि रुपये में कमजोरी आने की वजह से आयात शुल्क में कटौती होने से मिलने वाला अधिकांश फायदा अब खत्म हो गया है। इस समय निर्यात से हम मुनाफा कमाने की हालत में नहीं हैं क्योंकि इस्पात के निर्यात पर निर्यात शुल्क भी लगता है।