कागज की कीमतें बढ़ने से परेशान चल रहे पढ़ने-लिखने वालों की चिंताओं में शुक्रवार को और इजाफा हो गया।
यहां आयोजित एक सम्मेलन में मुद्रकों के संगठन ने चेतावनी दी और कहा कि यदि कागज की कीमतों और विभिन्न करों में सरकार ने वाजिब कटौती न की तो जल्द ही मुद्रण दरों में 25 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी कर दी जाएगी।
ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ मास्टर प्रिंटर्स (एआईएफएमपी) के गवर्नमेंट रिलेशंस प्रमुख विनोद जैन ने बताया कि बहुत ही जल्द उनका संगठन वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के सामने अपनी विभिन्न मांगों को रखेगा। सरकार से प्रिटिंग उद्योग को विशेष रियायत देने की मांग करते हुए जैन ने बताया कि प्रिंटिंग उद्योग दूसरे उद्योगों से अलग है।
जैन के शब्दों में, ‘शिक्षा और ज्ञान के प्रचार-प्रसार में प्रिंटिंग उद्योग की अहम भूमिका होती है। ऐसे में इससे दूसरे उद्योगों की तरह व्यवहार करना अनुचित है।’ एआईएफएमपी के पूर्व अध्यक्ष सतीश मल्होत्रा का कहना था कि उनके उद्योग को बौद्धिक संपदा कानून के तहत कई तरह की रियायतें मिलनी चाहिए। फेडरेशन की मुख्य चिंता है कि इस बजट में कागज उत्पादन पर लगने वाले शुल्क को 12 फीसदी से घटाकर 8 फीसदी कर दिया गया है। लेकिन लागत में वृद्धि का हवाला देते हुए मिलों ने कागजों के मूल्यों में कमी करने की बजाय उल्टा इसमें बढ़ोतरी कर दी।
जैन ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि कागज के मूल्यों में अमूमन साल में एक बार वृद्धि होती थी पर पिछले 4 महीनों में इसमें 4 बार बढ़ोतरी हो चुकी है। उन्होंने कहा कि यह ऐसा उद्योग है जिसमें लागत का 60 से 65 फीसदी कागजों और गत्तों पर खर्च हो जाता है। ऐसे में मुद्रकों के लिए प्रकाशनों की कीमत में वृद्धि करने के सिवा कोई चारा नहीं है। संगठन का आरोप है कि उसने सरकार के समक्ष इस साल अप्रैल में गुहार लगायी थी। उन्होंने कहा कि चुनाव की वजह से सरकार इस समय उनकी चिंताओं को नजरअंदाज कर रही है।