वायदा बाजार आयोग ने कहा है कि अमेरिका में हो रहा वायदा कारोबार कमोडिटी की कीमतों में बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार है और भारत में स्थिति इसके उलट है।
यहां आयोजित एक कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के बाद संवाददाताओं से बातचीत में वायदा बाजार आयोग के चेयरमैन बी. सी. खटुआ ने कहा कि जिन कमोडिटी की कीमत में बढ़ोतरी की बदौलत मुद्रास्फीति की दर में इजाफा हुआ है, उन चीजों का कारोबार हमारे कमोडिटी एक्सचेंज में नहीं होता। उन्होंने कहा कि महंगाई के आंकड़ों पर अच्छा खासा प्रभाव रखने वाले फल व सब्जी का कारोबार भी यहां के एक्सचेंज में नहीं होता।
गौरतलब है कि खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमत और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल व धातु की कीमत में उछाल के चलते देश में मुद्रास्फीति के आंकड़े 7.41 फीसदी पर पहुंच गए हैं। खटुआ ने कहा कि अमेरिकी बाजार में कई हेज फंड और पीई फंड वहां जिंसों की कीमतें बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिकी कमोडिटी फ्यूचर ट्रेडिंग कमिशन (सीएफटीसी) के पास पर्याप्त अधिकार व अनुभव होने के बाद भी वह इस पर काबू पाने में नाकाम रहा है।
गौरतलब है कि अमेरिका में सीएफटीसी कमोडिटी व कैपिटल दोनों तरह के बाजार को रेग्युलेट करता है।खटुआ ने कहा कि कुछ कमोडिटी मसलन स्टील आदि में मजबूती इसलिए आई है क्योंकि हेज फंड और पीई फंड केजरिए इसकी सटोरिया खरीदारी हो रही है। वैसे भारतीय बाजार पूरी तरह रिटेल बाजार है, जहां छोटे हेजर्स, उत्पादक, निर्यातक, आयातक, प्रोसेसर्स और छोटे सटोरिये हैं।
खटुआ ने कहा कि हमारे पास बड़े संस्थागत सटोरिये नहीं है, जो एक बार पैसा लगाकर फिर अपने आपको बाजार से किनारा कर लें।उन्होंने कहा कि थोक मूल्य सूचकांक पर 38-46 फीसदी का भार रखने वाले स्टील व खनिज का कारोबार इलेक्ट्रॉनिक प्लैटफॉर्म पर नहीं होता। कमोडिटी की कीमत को अपने मनमुताबिक तय करने के आरोप को खारिज करते हुए खटुआ ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक प्लैटफॉर्म पर खरीदार-बिक्रेता एक दूसरे को देखे बिना कारोबार करते हैं, लिहाजा यहां कीमत को अपने मनमुताबिक तय करने का कोई स्कोप नहीं है।
उन्होंने कहा कि एक या दो लोग पूरे बाजार को अपने हिसाब से नहीं चला सकते, वैसी जगह जहां कई भागीदार हो और बाजार तरल हो। उन्होंने कहा कि खाद्य तेल व दाल के संबंध में उठाए गए सरकारी कदम का असर पड़ा है।स्टील कंपनियों द्वारा इसके वायदा कारोबार पर पाबंदी लगाने के संबंध में खटुआ ने कहा कि एक्सचेंज में रोजाना 15 हजार टन का वायदा कारोबार होता है जबकि यहां कुल ओपन इंटरेस्ट 30 हजार टन का।
यह कहना सही नहीं है कि 30 हजार टन का ओपन इंटरेस्ट 5 करोड़ टन के स्टील बाजार पर असर डाल रहा है।एफएमसी को स्वायत्त बनाने के लिए हाल में जारी अध्यादेश के समाप्त हो जाने के संबंध में खटुआ ने कहा – हालांकि यह अध्यादेश अब प्रभावी नहीं रह गया है, लेकिन संसद में पेश किए जाने वाले एफसीआरए विधेयक में कुछ परिवर्तनों को अवश्य शामिल किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि सीमित शक्तियों के बावजूद एफएमसी बाजार को सही तरीके से चलाने में सक्षम है। एफएमसी चीफ ने कहा कि आयोग डब्बा कारोबारियों (अवैध कारोबारी) के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर रहा है और हमने ऐसे कारोबारियों के खिलाफ क्षेत्रीय एक्सचेंज में कदम उठाए हैं। उन्होंने कहा कि टैक्स की दर ऊंची होने से लोग टैक्स बचाने की प्रक्रिया में जुट जाते हैं।