पिछले साल कृषि कानूनों के पूर्ण समर्थन में आने वाले भारतीय उद्योग जगत के प्रमुखों ने कहा है कि किसानों की आय में सुधार के लिए कृषि क्षेत्र में भी सुधार की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कृषि संबंधी मसलों के समाधान के लिए समिति बनाने के सरकार के फैसले से किसानों के असली दुख की पहचान में काफी सहायता मिलेगी।
खाद्य क्षेत्र की दिग्गज ब्रिटानिया के प्रबंध निदेशक वरुण बेरी ने कहा ‘न्यायालय के निर्देशों के अनुसार ये कानून वैसे भी विलंबित थे। किसानों की प्राप्ति में सुधार के लिए कृषि क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है ताकि कृषि लाभकारी बनी रहे।’
बेरी ने कहा ‘किसानों के लिए ऋण बीमा तक पहुंच में सुधार और फसल कटाई के बाद बरबादी को कम करने के लिए उत्पादकता में सुधार के वास्ते बुनियादी ढांचे की उपलब्धता पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।’
मुख्य कार्याधिकारियों (सीईओ) ने कहा कि ये कृषि कानून किसानों के लाभ के लिए बनाए गए थे, न कि उद्योग के लिए अधिक लाभ कमाने के वास्ते। खाद्य और डेरी उत्पादों की दिग्गज अमूल के प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी ने कहा ‘अगर हम अपनी अगली पीढ़ी को किफायती दामों पर पर्याप्त पौष्टिक और सुरक्षित भोजन दिलाना चाहते हैं और एक देश के रूप में भोजन में आत्मनिर्भर बनना चाहते हैं, तो हमें किसानों की अगली पीढ़ी को कृषि उपज के लिए लाभकारी मूल्य देते हुए कृषि जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।’
इन तीनों कृषि कानूनों के पारित होने के तुरंत बाद भारतीय उद्योग जगत के प्रमुखों ने सीधे खेतों से खरीद के मामले में उद्योग की ओर से बहुत अधिक आकर्षण की उम्मीद की थी। कंपनियां किसान उपज संगठनों से बड़े पैमाने और आपूर्ति विस्तार करने का भी मूल्यांकन कर रही थीं।
अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस रिटेल, अदाणी विल्मर, टाटा और आईटीसी जैसे बड़े समूह सीधे किसानों से उत्पाद प्राप्त करने और इसे अपने खुदरा स्टोरों, ऑफलाइन वितरण शृंखला तथा सुपरऐप के माध्यम से ग्राहकों को बेचने की योजना बना रहे थे। हिंदुस्तान यूनिलीवर, पेप्सी, मैकडॉनल्ड्स कॉरपोरेशन की फ्रेंचाइजी सहित कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी किसानों से अपनी खरीद बढ़ाने की योजना बना रही थीं, क्योंकि इस वैश्विक महामारी के बाद मांग में सुधार होने लगा था। आपूर्ति के अवसरों में विस्तार करने की योजना थी और कंपनियां प्राथमिक प्रसंस्करण इकाइयों तथा उत्पादन समूहों के पास बड़े आकार के गोदाम स्थापित करने की योजना बना रही थीं। इस प्रकार पूरी आपूर्ति शृंखला को एक अधिक कुशल और एकीकृत प्रणाली में ढालने की योजना थी।
कंपनी के अधिकारियों ने कहा कि लेकिन इन कृषि कानूनों के पारित होने के बाद खरीद में समस्याएं शुरू हो गर्ई थीं। एक खाद्य उत्पाद कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर बताया ‘अक्टूबर में हम धान खरीदने की योजना बना रहे थे, लेकिन आंदोलन के कारण हमें सब कुछ रोकना पड़ा और इन कानूनों का लाभ नहीं प्राप्त कर सके। कई कंपनियां थोक में कृषि जिंसों की खरीद करने पर विचार कर रही थीं, क्योंकि नए कानूनों ने खरीद में आसानी सुनिश्चित की थी, लेकिन इस आंदोलन की वजह से वे इस संबंध में आगे नहीं बढ़ सकी थीं।’
लेकिन अब इन कानूनों को वापस लिए जाने से कंपनियों को उत्पादों की आपूर्ति के लिए पुराने तरीकों पर वापस जाना होगा, जिसमें सरकारी मंडियों (थोक बाजार) भी शामिल है।
आरआईएल, अदाणी, आईटीसी, नेस्ले सहित किसी भी बड़ी फर्म ने इन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने पर टिप्पणी नहीं की।
बिजनेस लॉबी समूह पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष प्रदीप मुल्तानी ने कहा कि कृषि मसलों के समाधान के लिए समिति बनाने का निर्णय किसानों के वास्तविक दर्द वाले बिंदुओं की पहचान करने में सहायक होगा। मुल्तानी ने कहा कि इससे सरकार को किसानों की आय के स्तर को बढ़ाने के लिए पर्याप्त कृषि नीति बनाने में मदद मिलेगी, विशेष रूप से उन सीमांत किसान के लिए, जिनका कुल किसानों में 80 प्रतिशत हिस्सा रहता है और दो हेक्टेयर से कम भूमि रखते हैं।
कॉरपोरेट रसोई फर्म – सीआरसीएल एलएलपी के मुख्य कार्याधिकारी और प्रबंध साझेदार डीआरई रेड्डी ने कहा कि हालांकि यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री ने विरोध करने वाले किसानों के साथ सहानुभूति जताते हुए कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की है, लेकिन सरकार को उसी रफ्तार से कृषि क्षेत्र में सशक्त सुधार पर विचार करना होगा।
