केंद्रीय पूल में 1 अप्रैल, 2022 को गेहूं का शुरुआती स्टॉक 1.95 करोड़ से 2 करोड़ टन रहने का अनुमान है जो कि विगत तीन वर्ष में न्यूनतम स्तर है। हालांकि, व्यापार और बाजार सूत्रों का कहना है कि यह स्तर भी नियमत: बफर को बनाए रखने और रणनीतिक भंडार के लिए जरूरी स्तर से काफी अधिक है।
बफर और रणनीतिक भंडार नियमों के मुताबिक हर साल 1 अप्रैल को देश के पास 75 लाख टन गेहूं का भंडारण होना चाहिए और इस साल का भंडारण तीन साल में सबसे कम होने के बावजूद जरूरी भंडारण से 160 फीसदी से अधिक रहेगा।
निर्यात के मोर्चे पर सरकार और व्यापार सूत्र दोनों ही इस बात पर सहमत हैं कि चालू वित्त वर्ष में यह 70 लाख से 72.5 लाख टन रह सकता है जो कि एक रिकॉर्ड स्तर है। अगले वित्त वर्ष में यदि मौजूदा लय बरकरार रहती है तो निर्यात 1 करोड़ टन पर भी पहुंच सकता है।
70 लाख से 72.5 लाख टन निर्यात में से 50 फीसदी से अधिक का निर्यात आईटीसी ने किया है जबकि शेष निर्यात में ओलाम एग्रो ऐंड कारगिल सहित क्लच बहुराष्ट्रीय व्यापार कंपनियां भागीदारी निभा रही हैं।
आधिकारिक रिकॉर्डों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2022 में केंद्र ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के लिए मई 2021 और मार्च 2022 के बीच 4.377 करोड़ टन गेहूं और चावल का आवंटन किया जो कि राशन की दुकानों के जरिये वितरित किए जाने वाले लगभग 5.5 करोड़ टन के अलावा है।
अधिकांश विश्लेषकों का कहना है कि यदि गेहूं में निजी कंपनियों की मौजूदा रुचि बरकरार रहती है तो हो सकता है कि आगामी वित्त वर्ष में केंद्र को 4.44 करोड़ टन के अपने पूरे लक्ष्य के बराबर गेहूं की खरीद करने की आवश्यकता नहीं होगी।
केंद्रीय पूल में गेहूं के सबसे बड़े योगदानकर्ता वाले राज्यों से एक मध्य प्रदेश ने पहले अपने खरीद लक्ष्य को 1.28 करोड़ टन से घटाकर 1 करोड़ टन कर दिया है।
गेहूं की कम खरीद के साथ साथ पुराना स्टॉक कम होने से वित्त वर्ष 2023 के लिए खाद्य सब्सिडी पर असर पडऩा निश्चित है। खाद्य सब्सिडी का एक अच्छा खासा हिस्सा गेहूं से आता है।
वित्त वर्ष 2023 के बजट दस्तावेजों के मुताबिक सब्सिडी 2.06 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहने का अनुमान है जो कि वित्त वर्ष 2022 के संशोधित अनुमानों से 28 फीसदी कम है।
यदि कोई आपात स्थिति नहीं उभरती है और गेहूं की खरीद लक्ष्य से कम रहती है तो केंद्र को सब्सिडी जरूरत के प्रबंधन में मदद मिलेगी।
इस बीच व्यापारियों के एक वर्ग का कहना है कि केंद्र को खुली बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के जरिये बेचे जाने वाले अनाज की कीमत को मौजूदा 2,150 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर कम से कम 2,400 रुपये प्रति क्विंटल करना चाहिए जिससे की कीमत बाजार दरों के स्तर पर आ सके।
