बिजली उत्पादन के लिए आयातित कोयले का इस्तेमाल करने वाली बिजली उत्पादन कंपनियों (जेनको) के लिए ईंधन की अधिक लागत के कारण शीघ्र ही अपनी निष्क्रिय यानी ठप पड़ी इकाइयों का प्रयोग करना मुश्किल हो सकता है। कई कंपनियों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को यह जानकारी दी।
पिछले सप्ताह केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने बिजली अधिनियम की धारा 11 को इस्तेमाल किया था, जिसमें आयातित कोयला आधारित सभी संयंत्रों के लिए पूरी क्षमता पर बिजली उत्पादन करना अनिवार्य किया गया था। हालांकि आयातित कोयले का इस्तेमाल करने वाली कुछ उत्पादक कंपनियों का तर्क है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले के दाम अधिक हैं, तो ऐसे में उनके लिए बिजली उत्पादन करना व्यावहारिक नहीं है, जबकि घरेलू बिजली एक्सचेंज पर बिजली की प्रति यूनिट कीमत 12 रुपये सीमित कर दी गई है।
आयातित कोयले पर चल रहे दो संयंत्रों वाली एक बिजली कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी ने कहा ‘वर्तमान में आयातित कोयले के दाम करीब 380 डॉलर प्रति टन होने से ईंधन लागत बढ़ रही है। यह धीरे-धीरे 400 डॉलर प्रति टन के स्तर की ओर बढ़ रहे हैं, जिसका मतलब यह है कि ईंधन की अधिक कीमतों से जल्द ही कोई राहत नहीं मिलने वाली है। साथ ही साथ एक्सचेंज पर बिजली के दाम 12 रुपये प्रति यूनिट सीमित कर दी गई है। यह कितना उचित है?’ मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध किया है।
पिछले सप्ताह बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ एक साक्षात्कार में जेएसडब्ल्यू एनर्जी के संयुक्त प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी प्रशांत जैन ने इसी प्रकार का अनुरोध करते हुए कहा था कि एक्सचेंज पर बिजली की प्रति इकाई कीमत बिजली-संचालित होनी चाहिए।
उन्होंने कहा ‘किसी जीवंत क्षेत्र के लिए कुछ चीजों को एक साथ आना होगा। गैर-संजीदा भागीदारों को बाहर कर दिया जाना चाहिए। मांग और आपूर्ति को बिजली के दाम निर्धारित करने होंगे तथा उत्पादों, ऋणदाताओं और वितरकों सहित हितधारकों को एकजुट होकर काम करना होगा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ऐसा कोई राष्ट्रीय बिजली संकट न हो, जैसा कि हम अभी देख रहे हैं।’
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार देश में कुल स्थापित तापीय क्षमता में से तकरीबन 7.5 प्रतिशत (17,200 मेगावॉट) आयातित कोयले पर आधारित है। इस क्षमता का 7,000 मेगावॉट से अधिक हिस्सा वित्तीय संकट के कारण बंद पड़ा है।
बिजली उत्पाद काफी लंबे समय से यह तर्क देते आ रहे हैं कि वितरकों को उनके साथ दीर्घावधि वाले बिजली खरीद करार करने चाहिए और उनकी इकाइयों के सुचारू रूप से काम करने के लिए बकाये का समय पर भुगतान सुनिश्चित करना चाहिए। साथ ही साथ इनमें से कुछ बिजली उत्पादक निष्क्रिय इकाइयों को चालू करवाने के लिए तत्काल आधार पर ईंधन लिंकेज और ऋण पुनर्गठन की भी बात करते हैं।
रिलायंस पॉवर के निदेशक के राजा गोपाल कहते हैं ‘हालांकि बिजली मंत्रालय मौजूदा बिजली संकट दूर करने के लिए उत्सुक है, लेकिन उत्पादक काफी वक्त से विभिन्न चुनौतियों से जूझ रहे हैं। अगर बाजार में बिजली आपूर्ति में सुधार करना है, तो पहले इन मसलों का समाधान कराना होगा।’
हालांकि फिलहाल राहत के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं। उदाहरण के लिए, उद्योग के सूत्रों ने कहा कि केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग (सीईआरसी) द्वारा पिछले महीने एक्सचेंज पर बिजली की कीमत में संशोधन (12 रुपये प्रति इकाई) के बाद मर्चेंट पॉवर वॉल्यूम 73 प्रतिशत गिरकर अब प्रतिदिन छह करोड़ इकाई हो गया है, जो मार्च में 22.5 करोड़ यूनिट प्रतिदिन था। इससे पहले मांग पूरी करने के लिए सरकार की बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) द्वारा ताबड़तोड़ खरीद के बाद बिजली की प्रति यूनिट कीमत 18 से 20 रुपये तक पहुंच गई थी।
बिजली मंत्रालय ने कहा था कि 13 साल बाद किया जाने वाला यह हस्तक्षेप उपभोक्ताओं के हित में किया गया है, ताकि बिजली की बढ़ती मांग के मद्देनजर बढ़ रहे बिजली के दामों को रोका जा सके।
