अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में किसान तिलहन को छोड़ दूसरी फसलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इससे तिलहन के उत्पादन पर असर पड़ रहा है। ऐसे में तेल के उत्पादन से जुड़े उद्योग ऐसी योजना बना रहे हैं, जिससे कम जोत में ही अधिक से अधिक पैदावार प्राप्त की जा सके। इसके लिए उत्तम किस्म के संकर बीजों का उपयोग करने की बात की जा रही है। अगर ऐसा हुआ, तो तिलहन के आयात पर भी निर्भरता घटेगी।
गौरतलब है कि इस बार रबी के मौसम में तिलहन के मुख्य उत्पादक राज्यों के किसान खाद्यान्नों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। ऐसे में तिलहन के उपज क्षेत्र में 7.61 फीसदी की गिरावट आई है। सेंट्रल ऑर्गेनाइजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री ऐंड ट्रेड (सीओओआईटी) के मुताबिक, 22 फरवरी को करीब 896 लाख हेक्टेयर जमीन पर तिलहन की फसल बोई गई, जबकि पिछले साल 997 लाख हेक्टेयर जमीन पर फसल बोई गई थी। रोपसीड, सरसों और अन्य महत्वपूर्ण तिलहनों को बोए जाने वाले क्षेत्र में 9.08 फीसदी की कमी आई है। सूर्यमुखी के उत्पादन पर भी असर पड़ने की संभावना है, क्योंकि इस बार इसके बोए जाने वाले क्षेत्रफल में भी तकरीबन 2.96 फीसदी की कमी दर्ज की गई है।
हालांकि मूंगफली के उपज क्षेत्र में 11.63 फीसदी की वृद्धि देखी गई है। साथ ही तिल के उपज क्षेत्र में आंशिक वृद्धि (0.896 फीसदी) हुई है। सीओओआईटी के अध्यक्ष देवेश जैन ने जीएम सीड के उत्पादन को स्वीकृति देने की वकालत की है। उनके मुताबिक, भारत में 15 फीसदी की दर से तिलहन की मांग बढ़ रही है। देश में प्रति वर्ष करीब 11.5 मिलियन टन खाद्य तेलों की खपत होती है, जबकि उत्पादन 5.5 मिलियन टन ही है। ऐसे में काफी मात्रा में खाद्य तेलों का आयात करना पड़ता है। सीओओआईटी के मुताबिक, तिलहन मौसम में (नवंबर-अक्टूबर) इस बार तेल का उत्पादन 25.49 मिलियन टन रहने की उम्मीद है। इसी तरह खरीफ के मौसम में 16.89 मिलियन टन उत्पादन होने की उम्मीद है। 2007-08 में कुल नौ तिलहन फसलों से करीब 8.48 मिलियन टन तेल का उत्पादन हो सकता है, जोकि पिछले साल से 0.72 मिलियन टन ज्यादा होगा।
इसी बीच तेल की कीमतों में पिछले महीनों में काफी तेजी देखी गई। रिफाइंड सोयाबीन तेल की कीमत 572 रुपये (दस किलो) से बढक़र 720 रुपये (दस किलो) तक पहुंच गई। वहीं आरबीडी पाम ऑयल में भी 23 फीसदी का उछाल देखा गया और इसाकी कीमत 541 रुपये (दस किलो) से बढक़र 665 (दस किलो) तक पहुंच गई।