दुनिया भर में फैली मंदी से परेशान कंपनियां अपने उत्पादन में भी कटौती कर रही हैं। ऐसे में मंदी की आशंका से देश से निर्यात होने वाले ईसबगोल का भविष्य भी बहुत अनिश्चित लग रहा है।
गुजरात के ईसबगोल कारोबारियों का ऐसा अनुमान है कि इस वित्तीय वर्ष के साथ ही अगले वित्तीय वर्ष में निर्यात में कमी की संभावना बन सकती है। कारोबारियों के अनुमान के मुताबिक वर्ष 2007-08 में भारत ने 1,500 कंटेनर ईसबगोल का निर्यात किया था जिसमें से एक कंटेनर में 20 टन ईसबगोल होता है।
केयूर इंडस्ट्रीज के मालिक मनुभाई पटेल का कहना है, ‘इस साल मार्च के अंत तक निर्यात 1,300 से 1,350 के दायरे में होगा। मुमकिन है कि कीमतों में उतार-चढ़ाव से अगले वित्तीय वर्ष में निर्यात कम होकर लगभग 1,200 कंटेनर हो सकता है।’
पटेल का कहना है, ‘वैश्विक मंदी की वजह से ईसबगोल का निर्यात इस साल कम रहेगा। पिछले दो सालों से कई कंपनियों ने ईसबगोल को कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। इसके अलावा मंदी की वजह से कंपनियों ने अपने स्टॉक में कटौती करना शुरू कर दिया। इसकी वजह यह थी कि जिंस की कीमतें बहुत ज्यादा थीं।’
पटेल सिद्धपुर के ईसबगोल प्रोसेसर्स एसोसिएशन (आईपीए) के भी सदस्य हैं। यहां यह बताना भी जरूरी है कि गुजरात में देश के कुल ईसबगोल के 90 फीसदी का प्रसंस्करण किया जाता है।
सन सिलियम इंडस्ट्रीज के मालिक विष्णु पटेल का कहना है, ‘अब कंपनियां भी मंदी की वजह से ईसबगोल कम ले रही हैं। इस साल निर्यात भी उम्मीद से कम होने की उम्मीद है। फिलहाल कंपनियां अपनी जरूरत भर के ईसबगोल का इस्तेमाल कर रही हैं।’ पटेल ने एक वैश्विक स्तर की कंपनी की मिसाल देते हुए कहा कि वह सालाना 300 से 350 लॉट खरीदती है। गौरतलब है कि 1 लॉट में 19 टन होता हैं।
पटेल का कहना है कि यह कंपनी हर महीने यह कंपनी 30 से 35 लॉट खरीदती है। लेकिन इसकी खरीदारी में भी अब मंदी का असर साफ देखने को मिल रहा है। इस कंपनी की खरीदारी में अब एक महीने में 20 से 25 लॉट की कमी आई है।
बाजार के लोगों का कहना है कि ईसबगोल का निर्यात वर्ष 2009-10 में 1,200 कंटेनर रह गया है। मनुभाई पटेल का कहना है, ‘ईसबगोल की कीमतें सिद्धपुर के हाजिर बाजार में 1,000 से 1,100 प्रति 20 किलोग्राम के हिसाब से चल रही हैं। पिछले साल इस अवधि की कीमतों के मुकाबले इस साल 100 रुपये प्रति 20 किलोग्राम की तेजी आई है।’
