ट्रक बनाने वाली घरेलू कंपनियों को सेहतमंद मुनाफा कमाने के लिए सरकार ने एक और राहत भरा पैगाम थमा दिया।
काफी समय से चली आ रही कंपनियों और ट्रक ऑपरेटरों की मांग पर हरी झंडी दिखाते हुए सरकार ने ट्रकों पर मूल्य ह्रास का लाभ उठाते हुए कर में छूट मांगने की अपनी योजना की अवधि को बढ़ा दिया। अब इस साल सितंबर तक ट्रक कंपनियां कम कर देने का फायदा उठा सकेंगी, जिससे उनके बहीखाते भी सुधर सकेंगे और मंदी से उन्हें राहत मिलेगी।
प्रत्यक्ष कर से जुड़े मामले देखने वाले केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी)की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि 1 अक्टूबर 2009 से पहले खरीदे गए या इस्तेमाल में लाए गए ट्रकों पर ट्रक मालिक 50 फीसदी तक डेप्रिसिएशन यानी मूल्य ह्रास का दावा कर सकते हैं।
इससे ट्रकों या अन्य वाणिज्यिक वाहनों का मूल्य कम करके आंका जाएगा और ऑपरेटरों को कर भी कम देना पड़ेगा। इससे कंपनियों को भी खासा फायदा मिलेगा। ट्रक कपंनियों और ऑपरेटरों के लिए यह फरमान मुंह मांगी मुराद पूरी होने जैसा है। सरकार ने पहले यह योजना 1 अप्रैल 2009 तक ही रखी थी।
लेकिन ट्रकों और बसों की लगातार घटती मांग को देखकर ये दोनों खेमे इस योजना को बढ़ाने की मांग कर रहे थे। डेप्रिसिएशन होने यानी मूल्य कम तय होने से ट्रक ऑपरेटरों की करोपरांत शुद्ध कमाई में भी अच्छा खासा इजाफा हो जाएगा।
मार्च 2009 में वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री में 26 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। भारतीय वाहन निर्माताओं के संगठन सियाम के मुताबिक इस दौरान केवल 41,881 वाणिज्यिक वाहन ही बिक सके। पिछले वित्त वर्ष के दौरान भी केवल 3,84,122 वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री हुई। उससे पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले यह आंकड़ा तकरीबन 22 फीसदी कम रहा।
ट्रकों के डेप्रिसिएशन की सीमा को बढ़ाने का काम सबसे पहले जनवरी 2009 में किया गया था। आर्थिक मंदी के दौरान मांग को बढ़ाने के लिए सरकार ने जो तमाम कदम उठाए थे, उनमें वाहन उद्योग के लिए राहत पैकेज के तौर पर यह भी शामिल था।
सरकार ने राहत पैकेज के तहत शुरुआत में यह योजना केवल उन्हीं वाणिज्यिक वाहनों के लिए लागू की थी, जो 1 जनवरी 2009 से पहले खरीदे गए या 1 अप्रैल 2009 से पहले जिनका इस्तेमाल हो गया।
