कीमतों पर काबू पाने के लिए उठाए जाने वाले कदम उठाने जाने की अटकलों के चलते खरीदार बाजार से दूर हैं और इस वजह से लोहे के लंबे प्रॉडक्ट की कीमत में करीब 3000 रुपये प्रति टन की गिरावट आई है।
अप्रैल महीने की शुरुआत में टीएमटी बार की कीमत 47 हजार रुपये प्रति टन थी जो अब घटकर 44 हजार रुपये प्रति टन पर आ गई है।इंडस्ट्री के सूत्रों ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा कि बहुत कम उत्पादक हैं जो लोहे के फ्लैट प्रॉडक्ट बनाते हैं, जबकि लंबे प्रॉडक्ट बनाने वालों की संख्या ज्यादा है। कुल 570 लाख टन स्टील उत्पादन में लंबे प्रॉडक्ट का हिस्सा 320 लाख टन का है।
एसपीएस स्टील के चेयरमैन व मैनेजिंग डायरेक्टर विपिन वोहरा ने बताया कि खरीदारों ने बाजार आना छोड़ दिया है और कंपनियों के पास अभी 20 दिन का स्टॉक है। उन्होंने कहा कि एक हफ्ते पहले तक टीएमटी बार की कीमत 47 हजार रुपये प्रति टन थी जो अब घटकर 44 हजार पर आ गई है। वोहरा ने कहा कि ऐसा नहीं है कि मांग में कमी आ गई है बल्कि खरीदार सरकारी नीति का इंतजार कर रहे हैं।
खरीदारों को लगता है कि बढ़ती कीमतों पर काबू पाने के लिए सरकार कुछ न कुछ कदम जरूर उठाएगी। एसपीएस करीब 40 हजार टन टीएमटी बार का उत्पादन करती है और देश के पूर्वी इलाके में रिटेल सेगमेंट में इस कंपनी का स्थान दूसरा है। एक अग्रणी उत्पादक ने भी इस बात की पुष्टि की है कि लंबे प्रॉडक्ट के खरीदार बाजार से गायब हैं और यही वजह है कि कीमतें उसी स्तर पर आ गई हैं।
एक प्राइमरी प्रडयूसर ने कहा कि हमारे मुकाबले सेकंडरी प्रडयूसर 3-4 हजार रुपये प्रति टन ज्यादा कीमत वसूल रहे थे जो अब उनकेबराबर हो गई है। प्राइमरी प्रडयूसर कुल उत्पादन में 18-20 फीसदी का योगदान देते हैं। कच्चे माल की कीमत में बढ़ोतरी की वजह से पिछले महीने सेकंडरी प्रडयूसर ने कीमतें चार बार बढ़ाई थी। जनवरी 2008 में टीएमटी बार की कीमत 30 हजार रुपये प्रति टन थी और स्टील मंत्रालय के आग्रह पर कुछ कंपनियों ने टीएमटी की कीमत में 2000 रुपये प्रति टन की कमी की थी।
वैसे उत्पादकों का दावा है कि लागत में बढ़ोतरी की वजह से उनका प्रॉफिट मार्जिन कम होता जा रहा है।