आगामी वर्षो में लौह अयस्क के वैश्विक उत्पादन की रफ्तार बढ़ेगी और इस तरह से स्थिरता के उस दौर का अंत हो जाएगा जब लौह अयस्क की कीमतें साल 2015 में एक दशक के निचले स्तर औसतन 55 डॉलर प्रति टन पर आ गई थी। फिच सॉल्युशंस ने एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी।
रिपोर्ट में कहा गया है, हमारा अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर उत्पादन की रफ्तार 2021-25 के बीच औसतन 3.6 फीसदी रहेगी, जो इससे पिछले पांच वर्षों में -2.3 फीसदी रही थी। यह सालाना उत्पादन में साल 2020 के स्तर के मुकाबले साल 2025 में 57.1 करोड़ टन का इजाफा कर देगा, जो मोटे तौर पर भारत व ब्राजील के साल 2020 के संयुक्त उत्पादन के बराबर है।
आपूर्ति की रफ्तार ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया के जरिये आगे बढ़ेगी। ब्राजील की खदान कंपनी वेले की आक्रामक विस्तार योजना है, वहीं बीएचपी बिलिटन, रियो टिंटो और फोर्टेस्क्यू समेत ऑस्ट्रेलिया की खनन कंपनियां अतिरिक्त उत्पादन पर मौजूदा लाभ का फिर से निवेश करेगी। चीन में लौह अयस्क का उत्पादन अगले तीन चार साल में एक बार फिर बढ़ेगा क्योंकि वहां आत्मनिर्भरता में बढ़ोतरी व ऑस्ट्रेलियाई आयात घटाने पर काम हो रहा है, जो हाल के वर्षों में काफी घटा है। फिच सॉल्युशंस का मानना है, चीन की खदान की स्थिति व उत्पादन के स्तर को देखते हुए लगता है कि चीन की फर्में विदेशी खदानों में निवेश को प्राथमिकता देगी, मसलन गिनिया की सिमान्डु भंडार में।
साल 2025 के बाद एजेंसी का मानना है कि कम कीमतें लौह अयस्क के उत्पादन की रफ्तार की दर की नीचे लाएगा। एजेंसी ने कहा, हमारा अनुमान है कि 2026-30 में लौह अयस्क के सालाना उत्पादन की रफ्तार औसतन 1.1 फीसदी रह जाएगी और दशक के आखिर में उत्पादन का स्तर स्थिर हो जाएगा।
एजेंसी का मानना है कि आम बजट में निचले ग्रेड वाले अयस्क पर निर्यात कर हटाए जाने और खनन व खनिज (विकास व नियमन) अधिनियम को लाइसेंसिंग व बंद पड़े खदान के लिए सरल बनाने से भारत के लौह अयस्क उत्पादन की रफ्तार को सहारा मिलेगा। यह अधिनियम हालांकि लौह अयस्क उत्पादन की रफ्तार को सहारा देगा, लेकिन अधिनियम में दर्ज रॉयल्टी इस क्षेत्र की बढ़त की गुंजाइश को सीमित कर देगा।