फ्रूटी बनाने वाली पारले एग्रो को छोटे टेट्रापैक बनाने वाले अपने कारखाने बंद करने पड़ सकते हैं क्योंकि कंपनी को डर है कि पेपर स्ट्रॉ की वैश्विक क्षमता कम होने और लॉजिस्टिक्स तथा वितरण समस्या के कारण आयातित पेपर स्ट्रॉ की आपूर्ति गंभीर रूप से बाधित हो सकती है। कंपनी अपने प्रमुख जूस ब्रांड फ्रूटी के अलावा सेब के जूस ऐपी और फ्लेवर्ड दूध स्मूद की बिक्री भी टेट्रा पैक में करती है।
सरकार 1 जुलाई से प्लास्टिक स्ट्रॉ पर रोक लगाने जा रही है। इससे पारले, अमूल, डाबर जैसे पेय, जूस और दूध ब्रांडों के 6,000 करोड़ रुपये के छोटे टेट्रा पैक (75 से 250 मिलीलीटर) उद्योग के पास प्लास्टिक की जगह ज्यादा महंगा पेपर स्ट्रॉ इस्तेमाल करने के अलावा कोई चारा नहीं है। रोक कुछ महीने बाद लागू करने के लिए सरकार को मनाने की भरसक कोशिश की जा रही है मगर सरकार की ओर से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
पारले एग्रो की मुख्य कार्य अधिकारी (सीईओ) शौना चौहान ने स्पष्ट कहा, ‘भारत में मांग अधिक है और अतिरिक्त जरूरत पूरी करने के लिए चीन या दूसरे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के विनिर्माता फौरन आपूर्ति नहीं कर सकते। उन्हें आपूर्ति में कम से कम तीन महीने लगेंगे। इसके अलावा कंटेनर भी समय पर नहीं पहुंच रहे और यह समस्या लंबे समय तक जारी रहेगी।’
शौना ने कहा कि प्रतिबंध लागू हुआ तो बतौर उद्योग उन्हें पेपर स्ट्रॉ के स्टॉक की स्थिति के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ पता नहीं है। उन्होंने कहा, ‘अगर लॉजिस्टिक्स या वितरण दिक्कतों की वजह से पेपर स्ट्रॉ आने में देरी होती है तो कारखाने पूरी तरह रुक जाएंगे और बिक्री में घाटा होगा।’ उन्होंने साफ किया कि स्थानीय स्तर पर पेपर स्ट्रॉ बनाने की क्षमता तैयार करने के लिए प्रतिबंध टालना बहुत जरूरी है।
साफ नजर आ रहा है कि आगे मुश्किलें आएंगी। प्रतिबंध कुछ समय के लिए टालने की वकालत कर रहे एक्शन अलायंस फॉर रीसाइक्लिंग बेवरिजेस कार्टन्स (एएआरसी) के मुताबिक ट्रेटापैक इस्तेमाल करने वाली एफएमसीजी कंपनियों को सालाना 6 अरब से अधिक स्ट्रॉ की जरूरत होती है। इस संगठन के सीईओ प्रवीण अग्रवाल ने कहा कि पेपर स्ट्रॉ की वैश्विक मांग का केवल 50 फीसदी हिस्सा ही पूरा हो पाएगा क्योंकि अन्य बाजारों खास तौर पर यूरोप में मांग काफी अधिक है। वह कहते हैं, ‘हमारा अनुमान है कि प्लास्टिक स्ट्रॉ की तुलना में पेपर स्ट्रॉ के लिए ज्यादा कीमत चुकाने के बाद भी इस साल के अंत तक भारत में केवल 25 फीसदी मांग ही आयात से पूरी हो सकती है।’
उनका कहना है कि पेपर स्ट्रॉ की वैश्विक किल्लत काफी अधिक है, जिससे विनिर्माताओं के लिए भारत प्राथमिकता सूची में बहुत पीछे है।
30 से 40 फीसदी पेपर स्ट्रॉ चीन में बन रहा है और बाकी इंडोनेशिया तथा यूरोप के कुछ देशों में बनाया जा रहा है। एफएमसीजी कंपनियों का कहना है कि पेपर स्ट्रॉ की कीमतें प्लास्टिक स्ट्रॉ की तुलना में दो से तीन गुना ज्यादा हैं। मगर आयात इसका अस्थायी उपाय है, इसलिए कंपनियों को इसका बोझ उठाना ही पड़ेगा। भारत में पेपर स्ट्रॉ का उत्पादन ही इसका स्थायी समाधान है। मगर अग्रवाल का कहना है कि मशीनें आने में कम से कम एक साल लगेगा।
सरकार ने 1 जुलाई से 22 उत्पादों में सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगा दी है। इनमें प्लास्टिक स्ट्रॉ के अलावा चम्मच, कांटा, प्लेट आदि शामिल हैं। हालांकि चौहान का कहना है कि 80 फीसदी इंटीग्रेटेड स्ट्रॉ (टेट्रा पैक के साथ चिपके स्ट्रॉ) की भारत में रीसाइक्लिंग होती है और ये खुले स्ट्रॉ से अलग होते हैं। चीन और थाईलैंड जैसे देशों ने ऐसे स्ट्रॉ को मंजूरी दे दी है, लेकिन भारत ने नहीं।
