उत्तर प्रदेश में गन्ने की कीमत से जुड़े ढेरों मामले सुप्रीम कोर्ट, इलाहाबाद हाई कोर्ट और लखनऊ हाईकोर्ट पीठ में अरसे से झूल रहे हैं।
हालांकि बीते 27 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम आदेश में चीनी मिल मालिकों को कहा गया था कि वह 2006-07 के पेराई मौसम से जुड़े गन्ने की बकाया राशि का जल्द से जल्द निपटारा करें। साथ ही कोर्ट ने सरकार द्वारा प्रस्तावित कीमत (सैप) के उलट यह भी कहा था कि चीनी मिल मालिक शुरुआती गन्ने के किस्मों के लिए 118 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से छह महीने में निपटारा करे।
इससे पहले भी गन्ने कीमतों के मामले में एक याचिका में इलाहाबाद हाईकोर्ट पीठ ने अपने अंतरिम आदेश को सुरक्षित रखा था। संभवत: अगले हफ्ते इस मामले में भी आदेश आने की उम्मीद है।
इससे पहले भी इसी तरह के एक मामले में लखनऊ हाईकोर्ट पीठ के पास एक याचिका विचाराधीन है। इसकी सुनवाई न्यायाधीश प्रदीप कांत की अध्यक्षता पीठ में आने वाले 18 मार्च को फैसला सुनाएगी।
देश के प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों में उत्तर प्रदेश का नाम सबसे ऊपर आता है।
यह महाराष्ट्र के बाद दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक राज्य है। इसमें कोई शक नहीं कि राजनीतिक पार्टियों में गन्ना कीमत की अदायगी से जुड़े आंकड़े प्राथमिकता में हैं। बहरहाल, गन्ना कीमतों के निपटारे को लेकर काफी विरोधाभास भी है। सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के अनुसार 2006-07 के पेराई के मौसम के लिए यह 118 रुपये निर्धारित किया गया था।
लेकिन वर्तमान मौसम में गन्ना किसानों को 110 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से दिया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने सैप की घोषणा की थी ताकि मिल मालिकों द्वारा किसानों को हर साल वाजिब रकम मिलती रहे। केंद्र सरकार भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एसएमपी) प्रभाव में लाई थी लेकिन उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में सैप की ही व्यवस्था लागू है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2007-08 के लिए सैप की घोषणा 30 अक्टूबर, 2007 को की थी। उस समय सामान्य किस्मों पर 125 रुपये प्रति क्विंटल, शुरुआती किस्मों के लिए 130 रुपये प्रति क्विंटल और अस्वीकृत किस्मों पर 122.50 प्रति क्विंटल कीमत रखी गई थी।
उल्लेखनीय है कि लखनऊ पीठ ने बीते वर्ष 15 नवंबर को मिल मालिकों को यह निर्देश दिया था कि गन्ना किसानों को 110 रुपये प्रति क्विंटल की दर से कीमत दी जानी चाहिए।
पेशे से गन्ना किसान और मेरठ कोऑपरेटिव केन डेवलपमेंट यूनियन के पूर्व अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में सैप के आदेशों को प्रभावी बनाने के लिए जनहित याचिका दायर की थी।