केंद्र सरकार ने इस महीने समाप्त होने जा रहे 2020-21 सीजन में 60 लाख टन चीनी का अनिवार्य निर्यात करने के लिए अब तक 1,800 करोड़ रुपये की सब्सिडी का भुगतान किया है। यह जानकारी पीटीआई ने खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से दी है।
चीनी के अतिरिक्त भंडार में कमी लाने और नकदी संकट का सामना कर रहे चीनी मिलों को गन्ना उत्पादकों का भुगतान समय पर करने में मदद देने के लिए सरकार को पिछले तीन सीजन में निर्यात सब्सिडी की पेशकश करनी थी।
अक्टूबर से शुरू होने जा रहे चीनी सीजन को लेकर न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने खबर दी है कि शुरुआती उत्साह के बाद घरेलू चीनी मिलें नए चीनी निर्यात समझौतों को टाल रही हैं क्योंकि घरेलू बाजार में चीनी की कीमतें चार वर्ष के उच्च स्तर पर पहुंच चुकी हैं। इससे स्थानीय और वैश्विक दरों के बीच का अंतर बढ़ गया है।
नैशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव सुगर फैक्टरीज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे ने कहा, ‘मिलें निर्याता समझौतों पर हस्ताक्षर नहीं कर रहीं हैं क्योंकि उन्हें स्थानीय बाजार में कहीं अधिक उच्च कीमत मिल रही है।’ भारत से निर्यात में कमी आने के कारण वैश्विक कीमतों को दम मिल सकता है क्योंकि ब्राजील जैसे शीर्ष उत्पादकों से आपूर्तियों में कमी आने के आसार हैं और व्यापारी इस कमी की भरपाई के लिए भारत पर भरोसा कर रहे थे।
चालू सीजन में रिकॉर्ड 75 लाख टन चीनी के निर्यात के बाद भारतीय मिलों ने 1 अक्टूबर से शुरू होने जा रहे विपणन वर्ष 2021-22 के लिए अब तक 12 लाख टन निर्यात का समझौता किया है।
व्यापारियों ने कहा कि इनमें से अधिकांश सौदे अगस्त में हुए थे लेकिन घरेलू कीमतों में तेजी आने के बाद से नए समझौतों की संख्या लगभग शून्य है।
एक वैश्विक ट्रेडिंग फर्म के साथ काम करने वाले मुंबई के एक डीलर ने कहा, ‘पिछले महीने तक मिलों की रुचि निर्यातों में थी क्योंकि स्थानीय और वैश्विक कीमतें एक समान स्तर पर थीं। स्थानीय कीमतों में तेजी आने के बाद निर्यात को लेकर उनकी रुचि कम हो गई है।’ डीलर ने कंपनी की नीति का हवाला देकर अपनी पहचान बताने से इनकार कर दिया।
पिछले दो महीनों में स्थानीय कीमतों में 13 फीसदी की उछाल आई है। चालू वर्ष में चीनी के निर्यात में उछाल आने और अर्थव्यवस्था के कोविड-19 संकट से उबरने के बाद चीनी की कीमत नवंबर 2017 के बाद से 36,900 रुपये प्रति टन पर पहुंच चुका है।
निर्यातक मिलों को कच्चे और सफेद चीनी के लिए क्रमश: 31,500 रुपये और 32,000 रुपये प्रति टन का भाव दे रहे थे।
इस बीच इस साल की निर्यात सब्सिडी पर खाद्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि करीब 3,500 करोड़ रुपये का बजट चालू सीजन में निर्यात सब्सिडी के लिए आवंटित किया गया है। इसमें 1,800 करोड़ रुपये सब्सिडी दावों को निपटाने पर खर्च किया जा रहा है जबकि बाकी सब्सिडी का भुगतान वित्त मंत्रालय से फंड जारी होते ही शीघ्र किया जाएगा।
सरकार ने नए सीजन 2021-22 के लिए सब्सिडी की पेशकश नहीं करने का निर्णय लिया है जिसके पीछे सरकार ने दलील दी है कि अंतराष्ट्रीय चीनी कीमतों में मजबूती आ रही है। कीमतों में इस मजबूती के लिए दुनिया के सबसे बड़े चीनी उत्पादक देश ब्राजील में गन्ने की पैदावार में संभावित गिरावट जिम्मेदार है।
हाल ही में खाद्य सचिव सुधांशु पांडे ने एक प्रेस वार्ता में कहा था कि 2021-22 सीजन में चीनी के निर्यातों पर सब्सिडी देने की कोई जरूरत नहीं है।
मंत्रालय के मुताबिक देश का चीनी उत्पादन अगले सीजन में भी 3.05 करोड़ टन पर सपाट रहने की उम्मीद है क्योंकि अधिक मात्रा में गन्ने का उपयोग एथनॉल के उत्पादन के लिए किया जाएगा।
चीनी सीजन (अक्टूबर से सितंबर) 2020-21 में चीनी का उत्पादन अनुमानित तौर पर 3.1 करोड़ टन रहा है।
ब्राजील के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है।
