उत्तर प्रदेश के चीनी मिल मालिक इन दिनों गन्ना किसानों की मिन्नत में लगे हैं। उन्हें इस बात का भय सता रहा है कि गन्ने की कमी के कारण पेराई के मौसम में उन्हें खाली बैठना पड़ सकता है।
इसलिए चीनी मिल के नुमाइंदे इन दिनों गांव-गांव घूम कर किसानों को गन्ने के उत्पादन के लिए मुफ्त बीज, खाद, कीटनाशक एवं अन्य सुविधाएं देने की पेशकश कर रहे हैं। हालांकि किसानों को इन बातों से कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है। दूसरी तरफ, गन्ने के भुगतान के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मिल मालिकों ने राहत की सांस ली है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गुलावटी इलाकों के किसानों ने बताया कि उनके गांवों में मिल मालिकों के प्रतिनिधि इन दिनों रोज ही चक्कर लगा रहे हैं। खाद और बीज के साथ वे खेती के लिए सरसों के बीज भी दे रहे है। सहारनपुर स्थित दया चीनी मिल के सलाहकार डीके शर्मा भी इस बात से सहमति जताते हुए कहते हैं, ‘इस साल उत्तर प्रदेश के सभी चीनी मिल की तरफ से डेवलपमेंट फंड की राशि बढ़ा दी गयी है।
यह बढ़ोतरी 10 फीसदी तक की गयी है ताकि किसानों को गन्ने के उत्पादन के लिए तैयार किया जा सके।’ गन्ने उत्पादन के प्रोत्साहन पर होने वाले खर्च को डेवलपमेंट फंड के नाम से जाना जाता है। नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज के अध्यक्ष जयंती भाई पटेल कहते हैं, ‘गन्ने के उत्पादन के लिए किसानों को तो मनाना ही पड़ेगा।
10 लाख टन पेराई की क्षमता वाली मिल में 5 लाख टन गन्ना पहुंचने पर काम कैसे चलेगा।’ हालांकि ग्रामीणों के मुताबिक मिल मालिकों की इन कोशिशों का किसानों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। गाजियाबाद जिले के सिवाया इलाके के रामबीर सिंह सिसौदिया कहते हैं, ‘भुगतान में होने वाली देरी व कम मूल्य के कारण किसान काफी भड़के हुए हैं।
इस साल गाजियाबाद जिले के गांवों में गन्ने की बिजाई में 25 फीसदी तक की कमी है। पहले इलाके की 40 फीसदी जमीन पर गन्ने की खेती होती थी जो इस बार यह बमुश्किल 15 फीसदी तक रह गयी है।’ उत्पादन में कमी के कारण कम समय की पेराई से मिलों को होने वाले घाटे के बारे में पटेल कहते हैं, ‘अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।’
हालांकि शर्मा को इस बात की उम्मीद है कि डेवलपमेंट फंड में हुई बढ़ोतरी से किसानों को रिझाने में सफलता जरूर मिलेगी। उत्पादन के मामले में देश में दूसरा स्थान रखने वाले उत्तर प्रदेश में लगभग 80 से अधिक चीनी मिलें हैं। 2007-08 के दौरान उत्तर प्रदेश में 82 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।
उधर किसानों को गन्ने के बदले होने वाले भुगतान के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मिल मालिकों को अतिरिक्त भुगतान नहीं करना पड़ेगा। उनका कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट 125 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से भुगतान करने का फैसला सुनाता तो हर मिल मालिक को करोड़ों रुपये का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ता। सुप्रीम कोर्ट ने 110 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भुगतान करने का आदेश दिया है।
मिल मालिकों के मुताबिक अधिकतर मिल की तरफ से इसी दर से पहले ही भुगतान किया जा चुका है। उन्होंने यह भी बताया कि 125 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भुगतान करने पर चीनी की कीमत में भी बढ़ोतरी हो जाती। क्योंकि इससे चीनी उत्पादन की लागत बढ़ जाती।