भारतीय चीनी उद्योग सब्सिडी पर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की समिति के फैसले को लेकर निर्यात की मौजूदा क्षमता या भविष्य में चीनी की संभावनाओं के संबंध में चिंतित नहीं है।
इस आशावाद का एक बड़ा कारण यह है कि अक्टूबर में शुरू होने वाले वर्ष 2021-22 के चीनी सत्र में पहले ही 60 लाख टन के संभावित निर्यात में से 38 लाख टन का बिना किसी सब्सिडी के करार किया जा चुका है, जबकि अगले चीनी सत्र (वर्ष 2022-23 में) में भी यही प्रवृत्ति बनी रह सकती है, क्योंकि ब्राजील में कम उत्पादन की वजह से वैश्विक स्तर पर चीनी की आपूर्ति कम हो सकती है, जो चीनी के दुनिया के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। व्यापार और उद्योग के सूत्रों ने यह जानकारी दी है।
बाजार पर नजर रखने वालों के अनुसार ब्राजील का चीनी निर्यात वर्ष 2022 के मध्य तक रफ्तार पकडऩे की संभावना नहीं है, क्योंकि जलवायु की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण वहां उत्पादन कम है, जिससे भारत थाईलैंड के साथ विश्व बाजार में चीनी का अकेला प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन गया है।
विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुसार किसी भी स्थिति में चीनी पर भारत की निर्यात सब्सिडी दिसंबर 2023 से समाप्त होनी है।
इसके बाद घरेलू एथनॉल मिश्रण कार्यक्रम के जरिये अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त चीनी की व्यवस्था की जाएगी। इस तरह बड़े निर्यात पर निर्भर रहने की आवश्यकता और कम हो जाएगी, हालांकि भारत विश्व बाजार में एक प्रमुख भागीदार बना रहेगा।
भारत वर्ष 2025 तक 60 लाख टन की अतिरिक्त चीनी का रुख एथनॉल की ओर करने की योजना बना रहा है, जो अक्टूबर में शुरू होने वाले वर्ष 2021-22 के सत्र में करीब 35 है, जिसके लिए यह वर्ष 2018 की 3.5 अरब लीटर सालाना की अपनी एथनॉल डिस्टिलेशन क्षमता को बढ़ाकर वर्ष 2025 तक 14 अरब डॉलर का लख्य बना कर चल रहा है।
उद्योग के अधिकांश भागीदारों और यहां तक कि सरकार को भी लगता है कि भविष्य के निर्यात की संभावनाओं पर न्यूनतम प्रभाव के अलावा निकट अवधि में विश्व व्यापार संगठन के फैसले का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
अपनी तरफ से केंद्र ने विश्व व्यापार संगठन के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने का फैसला किया है।
भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने एक बयान में कहा कि सबसे पहली और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जैसे ही भारत सरकार अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष अपील करती है, विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुसार मौजूदा सब्सिडी और घरेलू बाजार का समर्थन तब तक जारी रखा जा सकता है, जब तक कि अपीलीय प्राधिकारी द्वारा कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया जाता है। दूसरी बात यह है कि अब तक चीनी के लिए कोई निर्यात सब्सिडी नहीं है और इसलिए भारतीय चीनी निर्यात के संबंध में डब्ल्यूटीओ समिति के आदेश का कोई प्रभाव नहीं होगा।
इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों में जो निर्यात सब्सिडी दी जा रही थी, वह डब्ल्यूटीओ नियमों के तहत कृषि समझौते के अनुच्छेद 9.1 (डी) और (ई) के प्रावधानों के अनुसार है तथा इसलिए चीनी पर भारत की निर्यात सब्सिडी पूरी तरह से नियमों का अनुपालन कर रही है और शायद किसी भी बदलाव की आवश्यकता न हो।
