स्टील उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए जहां एक ओर स्टील उत्पादकों ने इसकी कीमत को स्थिर रखने का फैसला किया है।
वहीं विभिन्न धातुओं के वर्तमान मूल्यों को देखने से इस बात का खुलासा होता है कि स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) का मूल्य अन्य स्टील उत्पादकों से काफी कम है।
इस्पात उद्योग के सूत्रों के मुताबिक जहां अन्य उत्पादकों ने कीमत को स्थिर रखने के लिए कच्चे माल पर प्रति टन 5,000 से 6,000 रुपये का अधिभार लगाया है वही सेल ने गत दो-तीन महीनों से इस्पात की कीमतों को रोकने के लिए इस प्रकार का कोई भी अधिभार नहीं लगाया है।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस सप्ताह स्टील उत्पादकों से कहा था कि वे अल्पकालिक लाभ के लिए बाजार को गलत तरीके से प्रभावित नहीं करे। प्रधानमंत्री के इस बयान को सभी स्टील उत्पादकों ने अहमियत दी। और सभी प्रमुख उत्पादकों ने स्टील की कीमत को स्थिर कर दिया।
जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील के समारोह में प्रधानमंत्री ने कहा था कि वे सभी स्टील उत्पादकों को लंबे लाभ के बारे मं। सोचने को कहेंगे न कि अधिक मांग के कारण अल्पावधि लाभ के लिए बाजार को गलत तरीके से अपने पक्ष में करने के लिए। बाजार सूत्रों के मुताबिक सार्वजनिक उपक्रमों के उत्पाद की कीमत अन्य उत्पादकों के मुकाबले पहले से भी कम थी।
सूत्रों का कहना है कि सार्वजनिक उपक्रम व सेल के उत्पाद की कीमत अन्य के मुकाबले निश्चित रूप से जायज है। जहां सार्वजनिक उपक्रम में 8 एमएम स्टील प्लेट की कीमत 46,832 रुपये प्रति टन है वही निजी स्टील उपक्रम में 8 एमएम की कीमत प्रति टन 50,856 रुपये बतायी जा रही है। जहां सेल स्टील शीट को 51,192 रुपये प्रति टन के मूल्य पर बेच रहा है वही एस्सार में स्टील शीट की कीमत प्रति टन 55,060 रुपये बतायी जा रही है।
दूसरी ओर स्टील की बढ़ती कीमत लेकर सरकार काफी चिंतित नजर आ रही है। सरकार इसलिए भी चिंतित है कि मुद्रास्फीति को तय करने में इन धातुओं का योगदान 7 फीसदी का होता है।स्टील की बढ़ती कीमतों के देखते हुए इसके वायदा कारोबार पर भी प्रतिबंध लगाने की मांग जोर पकड़ने लगी। स्टील को जरूरी चीजों की श्रेणी में रखने की भी मांग उठने लगी।