धातु वर्ग की फीकी होती चमक से अलग स्टील अथॅरिटी ऑफ इंडिया (सेल) ने वर्ष 2008-09 की दूसरी तिमाही में शुध्द लाभ में 18 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की है।
सेल का शुध्द लाभ 2,009.6 करोड़ रुपये रहा। यह एक आश्चर्य की ही बात है क्योंकि सेल और बराबरी की अन्य कंपनियों ने वैश्विक बाजार में स्टील की कीमतों में आई तेजी का लाभ नहीं उठा सकी। सरकार ने मूल्य के मामले में अनुशासन बरतने की बात कही थी और स्टील कंपनियों ने इसे माना भी था।
इस साल की पहली छमाही में सेल का शुध्द लाभ 3,845 करोड़ रुपये रहा जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 3,225 करोड़ रुपये था। इस साल ऐसे मौके भी आए जब भारतीय स्टील कंपनियों ने अंतरराष्ट्रीय कीमतों से 10,000 रुपये से 15,000 रुपये प्रति टन कम कीमत पर स्टील बेची है।
ऐसा उस विपरीत परिस्थिति में हुआ जब लौह अयस्क के वैश्विक अनुबंधों की कीमतें 71 प्रतिशत से 93 प्रतिशत तक बढ़ीं और कोकिंग कोयला, जिसके लिए हम आयात पर काफी अधिक निर्भर करते हैं, की कीमतों में लगभग तीन गुना का इजाफा हुआ।
महंगाई में स्टील की कीमतों का महत्वपूर्ण स्थान होने के कारण सरकार ने इस पर कड़ी निगरानी रखी हुई थी। लेकिन तब सवाल उठता है कि सेल इस प्रकार का लाभ अर्जित करने में सफल कैसे रहा वह भी ऐसे समय में जब अगस्त में स्टील के बाजार पर वैश्विक मंदी की चिंता का कष्टकारी बोझ आ पड़ा?
सेल के अघ्यक्ष सुशील रूंगटा ने आने वाले दिनों में ‘कीमतें बढ़ाने’ की चेतावनी दी है। मूल्य वर्ध्दित और विशिष्ट स्टील के उत्पादन पर अधिक ध्यान देने तथा ‘राष्ट्रीय हित की परियोजनाओं’ को बड़े पैमाने पर स्टील बेचने के कारण भी सेल अन्य कंपनियों के मुकाबले इस कठिन दौर में बेहतर प्रदर्शन करने में सफल रहा।
वैश्विक स्तर पर बेंचमार्क स्टील उत्पाद हॉट रोल्ड कॉयल की कीमतें फिलहाल लगभग 750 डॉलर प्रति टन है जबकि इस साल की शुरुआत में इसकी कीमतें 1,000 डॉलर प्रति टन से अधिक थीं।लॉन्ग-उत्पाद मूल्यों में भी नरमी आ रही है।
घरेलू और विदेशी स्टील निमार्ताओं को इस बात की चिंता है कि स्टील के बड़े इस्तेमालकर्ता जैसे बिल्डर, कार और अन्य उपकरण बनाने वाली कंपनियों की खरीद में कमी आई आई है क्योंकि उनके उत्पादों की मांग में कमी आई है और बैंकों से उन्हें पर्याप्त मदद नहीं मिल रही है।
मांग में आई गिरावट से बाध्य होकर आर्सेलरमित्तल ने कजाकिस्तान और यूक्रेन की इकाई का उत्पादन लगभग 20 प्रतिशत से अधिक घटा दिया। उल्लेखनीय है कि इन इकाईयों के उत्पादन का मुख्यत: निर्यात किया जाता है। टाटा स्टील की स्वामित्व वाली कंपनी कोरस ने स्टील के उत्पादन में कटौती की है।
चीन, जिसने वर्ष 2007 में स्टील उत्पादन की क्षमता में 700 लाख टन का इजाफा कर कुल उत्पादन क्षमता 5,580 लाख टन पहुंचाया था, को अब अत्यधिक क्षमता और बहुत कम मांग जैसी परिस्थितियों से निपटना पड़ रहा है।
बाओस्टील के प्रमुख जु लिजियांग के अनुसार चीन में स्टील के उत्पादन में कटौती होगी। लेकिन इससे चीन के प्राधिकरण को उच्च लागत वाली और प्रदूषण फैलाने वाली 800 लाख की क्षमता-विस्तार को आने वानले महीनों में रोकने में आसानी होगी। भारत में भी हमलोगों के पास ऐसे उदाहरण मौजूद हैं। एस्सार तथा इस्पात ने उत्पादन में 30 प्रतिशत तक की कटौती की है।
कुछ कंपनियां उत्पादन में कटौती की वजह संयंत्र का रख-रखाव भी बता सकती हैं। वास्तविकता यह है कि बाजार में गिरावट के इस दौर में अगर स्टील का उत्पादन पहले जितने परिमाण में ही हो तो इस उद्योग की समस्याएं और बढ़ जाएंगी। लेकिन अभी तक सेल और टाटा स्टील का उत्पादन में कटौती करने की कोई योजना नहीं है।
लेकिन उत्पादन में कटौती नहीं करना कब तक इनके लिए अच्छा बना रहेगा यह देखा जाना है। पहली छमाही के बेहतर परिणाम शेयर बाजार में सेल को बचाने में कामयाब नहीं हो सके। सेल के शेयर की कीमतें इस साल 52 सप्ताह के अधिकतम स्तर 293 रुपये पर पहुंच गईं थी, शुक्रवार को इसका कारोबार 85 रुपये पर किया जा रहा था। दूसरी दिग्गज कंपनी टाटा स्टील के शेयर की कीमतें भी 52 सप्ताह के अधिकतम स्तर 970 रुपये से कम होकर 210 रुपये हो गए हैं।
बाजार में जारी उठा पटक इस वास्तविकता से ध्यान नहीं हटा सकती कि स्टील के प्रमुख उत्पादक सेल ने मूल्य वर्ध्दित स्टील के उत्पादन में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है और साल 2007-08 में यह बढ़कर 37 लाख टन हो गया है। इस प्रकार देखा जाए तो यह स्टील कमोडिटी के व्यवसाय से दूर हो गया है।
अब इस साल की दूसरी तिमाही में मूल्यवर्धित स्टील उत्पादन को बढ़ा कर 30 प्रतिशत कर दिया गया है। आम तौर पर मंदी के समय में कमोडिटी स्टील की तुलना में मूल्य वर्ध्दित स्टील पर कम प्रभाव पड़ता है। इस साल की दूसरी तिमाही में कंपनी तकनीकी-आर्थिक मानदंडों जैसे कोक की कीमत 3 प्रतिशत घटा कर और ऊर्जा की खपत 7 प्रतिशत घटा कर और अधिक सुधार किया है।
लागत में कटौती करना प्राथमिक विषय था क्योंकि पिछली तिमाही में सेल के कच्चे माल का बिल 2,362 करोड़ रुपये था। मंदी के दौर में उपभोक्ता न केवल सस्ते स्टील की चाहत रखते हैं बल्कि उनकी मांग साफ-सुथरे स्टील की भी होती है। कठिन समय में रूंगटा सभी पांच एकीकृत संयांत्रों के आधुनिकीकरण पर जोर दे रहे हैं और हॉट मेटल क्षमता साल 2012 तक बढ़ाकर 262 लाख टन करना चाहते हैं।