मूल धातुओं की खपत को लेकर उद्योग जगत सचेत हो गया है,क्योंकि इस माह के दौरान लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में तांबे, जिंक और एल्युमीनियम की कीमतों में क्रमश: 20, 19 और 7 प्रतिशत की तेजी आई है।
यह उछाल इसलिए आया है कि चीन का स्टेट रिजर्व ब्यूरो, तांबे और जिंक की खरीद रणनीति के तहत कर रहा है। मूल धातुओं की कीमतें वैश्विक रूप से उत्पादन में कटौती के चलते भी बढ़ रही हैं। चीन, एल्युमीनियम का बड़ा उत्पादक है।
लेकिन अपनी मांग पूरी कर पाने भर को उसके पास तांबे की खदानें नहीं हैं। इसलिए वहां पर तांबे की खरीद सरकार बड़े पैमाने पर कर रही है, जिसका प्रयोग इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार क्षेत्र में होता है। साथ ही इसका उपयोग परिवहन उद्योग में भी हो रहा है, जिसका प्रयोग हाइब्रिड कारें बनाने में जरूरी है।
आने वाले वर्षों में हाइब्रिड कारों की मांग बढ़ने की उम्मीद की जा रही है। बहरहाल उद्योग जगत के विश्लेषकों का मानना है कि तांबे की कीमतों में बढ़ोतरी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। लंदन के डॉयचे बैंक एजी के विश्लेषक मिशेल लीविस ने कहा, ‘मौसमी आंकड़ों से संकेत मिलता है कि चीन में तांबे का आयात आगामी 3 महीनों में खत्म हो जाएगा।’
एलएमई में तांबे की कीमतें शुक्रवार को 4816 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गईं, जो पिछले 6 महीनों का सर्वोच्च स्तर है। 2 जुलाई को तांबे की कीमत लंदन मेटल एक्सचेंज में सर्वाधिक, 8900 डॉलर प्रति टन थी। 24 दिसंबर को इसकी कीमत 68 प्रतिशत गिरकर 2809 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई, क्योंकि वैश्विक आर्थिक मंदी के चलते नकदी का संकट खड़ा हो गया और मांग बहुत कम हो गई।
भारत की सबसे बड़ी तांबा उत्पादक कंपनी, स्टरलाइट इंडस्ट्रीज ने इस सिलसिले में कुछ भी नहीं कहा, क्योंकि कंपनी का तिमाही परिणाम 28 अप्रैल को आने वाला है। बीएसई में कंपनी का शेयर शुक्रवार को 388 रुपये में बिका।
कंपनी के शेयर की कीमतों में इस महीने में 9 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, जबकि इस अवधि में सेंसेक्स 13.5 प्रतिशत ऊपर चढ़कर 11023 अंकों पर पहुंच गया। वहीं वैश्विक मांग बढ़ने से एलएमई में एल्युमीनियम की कीमतों में 7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और यह 1449 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया।
इस धातु का प्रयोग मुख्य रूप से परिवहन, पैकेजिंग और भवन निर्माण क्षेत्र में होता है। जुलाई 2008 में एलएमई में इसकी कीमतें 3,271 डॉलर प्रति टन के उच्चतम स्तर पर पहुंचा था, जो फरवरी 2009 में 67 प्रतिशत गिरकर 1251 डॉलर प्रति टन पर आ गया। इस समय इसकी कीमतें 3 महीने के उच्चतम स्तर पर हैं।
साथ ही विश्लेषक और उत्पादक कीमतों में और बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे हैं। नैशनल एल्युमीनियम कंपनी (नाल्को) के निदेशक (वित्त) बीएल बागरा ने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि इसकी वैश्विक कीमतों में वर्तमान स्तर से और सुधार आएगा।’ कंपनी को उम्मीद है कि कीमतें चालू वित्त वर्ष में 1700 डॉलर के औसत स्तर पर पहुंचेंगी और साल के अंत तक यह 2000 डॉलर तक पहुंच जाएगा।
नाल्को का उत्पादन लागत 1300 डॉलर प्रति टन है। यह एलएमई की कीमतों पर उपभोक्ताओं से 40 से 60 डॉलर प्रति टन के हिसाब से प्रीमियम लेती है। स्टील के गैल्वेनाइजिंग में काम आने वाले जिंक की कीमतों में भी तेजी आई है और स्टील की मांग बढ़ने, चीन द्वारा स्टॉक बनाने के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई।
एलएमई में जिंक की कीमतें पिछले साल 3 मार्च को 2810 डॉलर प्रति टन के उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं थीं, जो 12 दिसंबर को 62.7 प्रतिशत गिरकर 1046 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गईं। शुक्रवार को एलएमई में जिंक 1530 डॉलर प्रति टन के हिसाब से बिका।
मुंबई स्थित अंतरराष्ट्रीय ब्रोकरेज फर्म मैकक्वायर के विश्लेषक राकेश अरोरा ने कहा कि चालू वित्त वर्ष के दौरान इसकी कीमत 1251 डॉलर प्रति टन पर पहुंच सकती है। हिंदुस्तान जिंक ने इस मसले पर कुछ भी कहने से इनकार किया, क्योंकि उसके तिमाही परिणाम 22 अप्रैल को आने वाले हैं।
कंपनी के शेयर में इस महीने 11.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और बीएसई में इसके शेयर 498 रुपये प्रति शेयर पर पहुंच गए हैं।
