भारतीय कॉफी के निर्यात पर दुनिया भर में फैली मंदी का अच्छा-खासा असर हो रहा है।
इस साल जनवरी-फरवरी महीने में भारत से होने वाले कॉफी निर्यात में पिछले साल की इसी अवधि के निर्यात के मुकाबले 14.5 फीसदी की गिरावट आई।
कॉफी बोर्ड के आंकड़ों की मानें तो जनवरी से 5 मार्च तक का कुल निर्यात 33,120 टन रहा। पिछले साल इसी अवधि में कुल निर्यात 38,766 टन था।
डॉलर के लिहाज से निर्यात में 24 फीसदी की गिरावट आ गई जबकि रुपये के भाव के लिहाज से इसमें 8 प्रतिशत की गिरावट आ गई। इस साल जनवरी-फरवरी में निर्यात पिछले साल के 386.27 करोड़ रुपये के मुकाबले 354.15 करोड़ रुपये रहा।
कुल कॉफी निर्यात में अरेबिका का हिस्सा 8,997 टन और रोबुस्टा का 24,123 टन रहा। अरेबिका का इस्तेमाल कॉफी की बेहतरीन क्वालिटी में किया जाता है जबकि रोबुस्टा की क्वालिटी साधारण होती है। रोबुस्टा शराब बनाने में भी काम आती है साथ ही इसका इस्तेमाल इंस्टेंट कॉफी बनाने में भी होता है। देश के कॉफी उत्पादन में लगभग 70 फीसदी रोबुस्टा का ही हिस्सा होता है।
देश के कॉफी निर्यातकों के एसोसिएशन के अध्यक्ष रमेश राजा का कहना है, ‘रुस और यूक्रेन से मांग में बहुत तेजी से कमी आई है। इसके अलावा यूरोपीय बाजारों से भी मांग कम हो गई है।’ इटली के बाद भारतीय कॉफी का सबसे बड़ा खरीदार रुस ही है। कुल निर्यात का 65 फीसदी यूरोपीय बाजारों को जाता है।
उनका कहना है, ‘आर्थिक मंदी के असर के बारे में जितनी उम्मीद की जा रही थी यह उससे कहीं ज्यादा है। कॉफी के लिए जनवरी-मार्च की तिमाही अच्छी साबित नहीं होगी। पिछले साल के मुकाबले निर्यात में 20 फीसदी की गिरावट आई।’ वह ऐसा जरूर मानते हैं कि अगले कुछ महीनों तक निर्यात में ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं होगा।
कॉफी बोर्ड के अध्यक्ष जी. वी. कृष्णा राव का कहना है, ‘मंदी ने कॉफी कारोबारियों के अंदर सावधानी बरतने की समझ बना दी है। वर्ष 2008 में सितंबर-नवंबर की अवधि के दौरान खासतौर पर कोई अग्रिम समझौते नहीं हुए। दुनियाभर में कॉफी की कीमतें कुछ महीनों के दौरान अचानक से 25 फीसदी से ज्यादा गिरी हैं।’
उनका कहना है कि कीमतों के अचानक से गिरने से अनिश्चतता की स्थिति सी बन गई। इसी वजह से अग्रिम अनुबंध बहुत कम हुए। वैश्विक मंदी की वजह से दुनियाभर में कॉफी की मांग में भी कमी आई, खासतौर पर प्रीमियम स्तर के कॉफी की मांग कम हो गई है। घरेलू उत्पादन में कमी आने से भी निर्यात पर इसका असर पड़ा।
कॉफी का उत्पादन फसल वर्ष अक्टूबर 2008-मार्च 2008 में भी पहले के अनुमान की तुलना में कम ही रहा। कॉफी बोर्ड ने पिछले साल नवंबर में मॉनसून के बाद जब सर्वे कराया तो यह अनुमान लगाया गया कि नई फसल 2,76,600 टन तक होगी। फसल के लगाने के तुरंत बाद पिछले साल मई में जो सर्वे कराया गया उसके मुताबिक फसल लगभग 2,93,000 टन होनी थी।
रॉव का ऐसा मानना है कि कुल उत्पादन में आगे भी 12,000 टन की गिरावट हो सकती है।कॉफी की नई फसल में जितनी भी कमी आई है वह कर्नाटक की फसल से ही हुई है। रॉव का कहना है, ‘केरल और तमिलनाडु में उत्पादन लगभग उम्मीद के हिसाब से ही हुई है। हालांकि कर्नाटक में खासतौर पर यहां के चिकमंगलूर जिले में असमय बारिश होने की वजह से फसल में कमी आई।
फसल में कमी खाद के उपलब्ध नहीं रहने और कीटों के लगने से भी आई।’ देश की कुल कॉफी का दो-तिहाई हिस्सा कर्नाटक में ही उगाया जाता है।देश में कॉफी के कुल उत्पादन का लगभग 70-75 फीसदी विदेश में निर्यात किया जाता है। कुछ निर्यातकों के मुताबिक भारतीय कॉफी की कीमतें ऐसी नहीं हैं कि दुनिया के बाजार में इसकी मांग बढ़ सके।
वियतनाम की कॉफी की कीमत भारतीय कॉफी की तुलना में कम से कम 50 फीसदी कम है। हसन स्थित एक कॉफी की कंपनी के प्रबंध निदेशक मार्विन रोड्रिग्यूज का कहना है, ‘भारत में परिवहन और प्रसंस्करण की बहुत ज्यादा लागत पड़ती है। इसकी वजह यह भी है कि यहां तकनीक और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इन सभी वजहों से कीमत में इजाफा होता है और विदेशी खरीदारों का आकर्षण कम होता है क्योंकि वे सस्ती खरीदारी करना चाहते हैं।’
कॉफी बोर्ड को यह उम्मीद है कि वर्ष 2008-09 के निर्यात का लक्ष्य पूरा हो सकता है। इस फसल वर्ष में निर्यात का लक्ष्य 2,100 करोड़ रुपये तय किया गया था। कॉफी बोर्ड के आंकड़ों की मानें तो 2,066.55 करोड़ रुपये तक का लक्ष्य पहले से ही पूरा किया जा चुका है।
फसल की मात्रा के लिहाज से 2,10,000 टन का लक्ष्य रखा गया था जिसमें से 5 मार्च तक 1,83,659 टन का लक्ष्य पूरा किया जा चुका है। पिछले फसल वर्ष यानी 2007-08 के मुकाबले इस फसल वर्ष (2008-09)में कॉफी के निर्यात में अनुमानित स्तर से 6-7 फीसदी कम है।
