देश में तिलहन खासकर खरीफ सीजन की प्रमुख फसल सोयाबीन ने बुवाई के क्षेत्र में रिकॉर्ड बना दिया । सोयाबीन का रकबा बढ़ने से देश में सोयाबीन का उत्पादन पिछले सालों की अपेक्षा अधिक होने की उम्मीद जताई जा रही है। बाजार में सोयाबीन की बढ़ती आपूर्ति के बीच मांग कमजोर होने के कारण आने वाले दिनों में तिलहन के दामों में गिरावट होने की संभावना जताई जा रही है। जिसका असर खाद्य तेल की कीमतों पर पड़ेगा ।
मानसून की अनियमितता के कारण जुलाई महीने में देश में कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे की स्थिति को देखते हुए खरीफ सीजन की फसल प्रभावित होने के दावे किये गए, लेकिन फसल बुवाई के आंकड़े पिछले साल की अपेक्षा सोयाबीन के रकबे को बेहतर बता रहे है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी किये गए ताजा आंकड़ों में जुलाई के अंत तक देश भर में 114.685 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन फसल की बुवाई हुई। हालांकि कारोबारियों की नजर में सोयाबीन का रकबा इससे भी ज्यादा है। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (सोपा ) के मुताबिक 29 जुलाई तक देश में कुल 117.5521 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में सोयाबीन की बुवाई हो चुकी है।
मानसून की अनियमित चाल का असर सोयाबीन के बुवाई पर भी पड़ा है। देश में सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश में इस साल जुलाई महीने में सोयाबीन की बुवाई पिछले कई सालों के अपेक्षा कम हुई है। सोपा के अनुसार मध्य प्रदेश में 50 लाख हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्रफल में और सरकार के अनुसार 48 लाख हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में सोयाबीन की बुवाई हुई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल जुलाई महीने के दौरान मध्य प्रदेश में 48.76 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की बुवाई हुई। मध्य प्रदेश में सोयाबीन बुवाई का यह क्षेत्र 2017 के बाद सबसे कम है। पिछले साल इस समय तक यहां सोयाबीन का रकबा 49.76 ला ख हेक्टेयर, 2020 में 57.17 ला ख हेक्टेयर, 2019 में 54.77 लाख हेक्टेयर, 2018 में 53.18 लाख हेक्टेयर और 2017 में 47.13 लाख हेक्टेयर पहुंच चुका था ।
सोयाबीन उत्पादक दूसरे प्रमुख राज्य महाराष्ट्र में जोरदार बारिश और बाढ़ के बावजूद रकबा पिछले कई सालों की अपेक्षा अधिक है। फसल बुवाई के सरकारी आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र में जुलाई के अंत तक 45.615 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बुवाई हुई जबकि पिछले साल जुलाई 2021 में 43.829 लाख हेक्टेयर, 2020 में 40.741 लाख हेक्टेयर, 2019 में 35.020 लाख हेक्टेयर, 2018 में 37.488 लाख हेक्टेयर और 2017 में 35.449 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की बुवाई हुई थी । महाराष्ट्र में सोयाबीन का रकबा बढ़ने की वजह किसानों का सोयाबीन की फसल की तरफ आकर्षित होना है
क्योंकि दूसरी फसलों में पिछले कई सालों से नुकसान हो रहा था जबकि सोयाबीन और कपास के बेहतर दाम मिल रहे थे। लगातार बारिश के कारण पिछले कुछ दिनों से सोयाबीन के दाम बढ़े लेकिन यह तेजी ज्यादा दिनों तक टिकनेवाली नहीं है क्योंकि बाजार में सोयाबीन की आपूर्ति बेहतर है। ओरिगो ई-मंडी के असिस्टेंट जनरल मैनेजर (कमोडिटी रिसर्च) तरुण तत्संगी के मुताबिक मौजूदा खरीफ सीजन में बुआई बढ़ने की वजह से भी आने वाले दिनों में सोयाबीन की कीमतों पर दबाव बढ़ेगा । सोयाबीन अपनी मौजूदा कीमतों से 12 फीसदी टूटकर 5500 रुपये प्रति क्विंटल पर आ सकता है। अभी सोयाबीन की कीमत 6,250 रुपये प्रति क्विंटल पर बोली जा रही है। यानी इसमें मौजूदा भाव से 750 रुपये की गिरावट आ सकती है। नई फसल आने पर सोयाबीन का भाव 5,000 रुपये प्रति क्विंटल के आस पास होगा ।
सोपा की तेल वर्ष 2021-22 की रिपोर्ट के अनुसार बीते तेल वर्ष के मुकाबले इस वर्ष देश में सोयाबीन का उत्पादन ज्यादा रहा । हालांकि सीजन के दौरान मंडियों में आवक और प्लांटों में क्रशिंग कम रही । इसके चलते जुलाई की स्थिति में देश के सोया प्लांट, ट्रेडर्स और किसानों के हाथ में सोयाबीन का स्टाक 48.17 लाख टन है।
बीते वर्ष इस अवधि में स्टाक सिर्फ 13.04 लाख टन ही था । यानी अब भी मंडियों में आने और क्रशिंग के लिए देश में सोयाबीन की अच्छी मात्रा उपलब्ध है। अक्टूबर 2021 से सितंबर 2022 के दौरान देश में सोयाबीन की कुल फसल 120.72 ल ख टन आंकी गई है। बीते वर्ष यह आंकड़ा सिर्फ 109 लाख टन था । दरअसल अच्छे दामों की उम्मीद और एग्री कमोडिटी में लगातार तेज बने रहे बाजार के कारण किसान और स्टाकिस्टों ने माल रोका । नतीजा अब देश में अच्छा भंडार उपलब्ध है। सितंबर से सोयाबीन की नई फसल की आवक शुरू हो जाएगी । ऐसे में आने वाले दिनों में मिलों पर क्रशिंग का दबाव बढ़ेगा और कीमतें कम होगी ।