वित्त वर्ष 2009 में घरेलू सीमेंट उद्योग की वृध्दि दर उत्पादन और लदान दोनों नजरिये से पांच वर्षों के न्यूनतम स्तर पर आ गई हैं।
हालांकि वित्त वर्ष 2009 में सीमेंट उद्योग ने उत्पादन और लदान में क्रमश: 7.75 फीसदी और 5.91 प्रतिशत की वृध्दि दर दर्ज की है। सीमेंट उत्पादक संघ के अस्थायी आंकड़ों के अनुसार, साल 2008-09 के दौरान कुल उत्पादन 1,813.5 लाख टन रहा जबकि इससे पिछले साल यह 1,683.1 लाख टन था।
लदान बढ़ कर 1,809.5 लाख टन हो गया जबकि पिछले साल यह 1676.8 लाख टन था। साल 2003-04 में सीमेंट उद्योग ने उत्पादन में 5.52 फीसदी और लदान में 5.55 फीसदी की वृध्दि दर दर्ज की थी। तब से दोनों ही आंकड़े 8 प्रतिशत से अधिक रहे हैं।
मार्च महीने में ऐतिहासिक रूप से अधिक उत्पादन और 180 लाख टन का लदान होने के बावजूद वित्त वर्ष 2009 में उद्योग की वूध्दि दर इतनी कम रही है। वित्त वर्ष 2009 की अंतिम तिमाही के अन्य दो महीनों की तुलना में मार्च में सीमेंट उद्योग का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा।
इस दौरान उत्पादन वृध्दि दर 10.07 फीसदी और लदान वृध्दि दर 10 प्रतिशत दर्ज की गई जो पिछले तीन वर्षों के समान महीने में सर्वाधिक है। पांच वर्ष में सबसे कम वृध्दि दर दर्ज करने के साथ ही उद्योग सीमेंट उद्योग के कार्य समूह (वर्किंग ग्रुप) द्वारा तय किए गए पंचवर्षीय योजना (2007-12) के उत्पादन लक्ष्य को लेकर चलने में विफल रही है।
साल 2008-09 के लिए उत्पादन लक्ष्य 1975.1 टन रखा गया था जबकि उत्पादन इससे 8.2 फीसदी कम हुआ है। उत्पादन लक्ष्य तय करने से पहले कार्य समूह ने जीडीपी ग्रोथ 9 प्रतिशत और सीमेंट मांग वृध्दि 11 प्रतिशत माना गया था। हालांकि, जीडीपी इससे काफी कम रहने का अनुमान है इसलिए ये गणनाएं अब ठीक नहीं रही हैं।
दिलचस्प बात यह है कि सीमेंट उद्योग कम मांग वृध्दि परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए तय किए गए 1926.6 लाख टन के उत्पदन लक्ष्य को भी प्राप्त नहीं कर पायी। पिछले साल भी, कार्य समूह द्वारा तय किए लक्ष्य के आस पास नहीं पहुंच पाई थी।
उद्योग विश्लेषकों ने बताया कि 8 प्रतिशत की वृध्दि दर ‘अनुमानों के अनुरूप है और वास्तविकता यह है कि चालू वित्त वर्ष में यह लगभग 6 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच सकता है।’ उन्होंने कहा कि सीमेंट उद्योग की वृध्दि दर देश के जीडीपी ग्रोथ में परस्पर संबंध है और इसका गुणक 1.2 है।सीमेंट उद्योग के प्रदर्शन में आई गिरावट की आशा की जा रही थी।
पिछले वित्त वर्ष में अक्टूबर में मांग घट कर 4 प्रतिशत के स्तर पर आ गई। और इससे पहले यह 6 से 9 प्रतिशत के बीच झूल रहा था। नवंबर महीने में इसमें तेजी आई और लगातार 8 प्रतिशत से ऊपर बना रहा और पिछले साल दिसंबर में बढ़ कर 12 प्रतिशत के स्तर तक पहुंच गया था।
