देश से होने वाले चीनी के निर्यात में पहली बार कच्ची चीनी का निर्यात सफेद चीनी से अधिक हुआ है।
इस चीनी सीजन (अक्टूबर से सितंबर के बीच) के दौरान जहां 9,00,000 टन सफेद चीनी का निर्यात हुआ है वहीं दूसरी ओर 16 लाख टन कच्ची चीनी का निर्यात हुआ है।भारतीय चीनी मिल संघ (इंडियन शुगर मिल्स असोसिएशन, आईएसएमए) के महानिदेशक एस एल जैन ने कहा कि देश ने इससे पहले इतने बड़े स्तर पर कच्ची चीनी नहीं बेची थी।
यह हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है और इस तरह से हम ब्राजील के वर्चस्व वाले बाजार में सेंध लगा सकते हैं।दुबई, मिस्र, ईरान और बांग्लादेश भारत की कच्ची चीन के प्रमुख खरीदार हैं। पहले ये सभी सफेद चीनी खरीदा करते थे लेकिन पिछले कुछ समय से जब से कच्ची चीनी की क्वालिटी को बेहतर बनाया गया तब से ये कच्ची चीनी खरीदने लगे। ब्राजील की तुलना में भारत इन सभी स्थानों के करीब भी है, इसलिए यहां से चीनी मंगाने में भाड़े का भी कम खर्च बैठता है।
शुरुआत में जो सौदा हुआ था तो वो 246 डॉलर प्रति टन के हिसाब से हुआ था लेकिन दुनिया में चीनी के अनुमान से कम उत्पादन की वजह से इसकी कीमतें बढ़कर 340 डॉलर प्रति टन हो गईं। अंतरराष्ट्रीय चीनी संगठन (इंटरनेशनल शुगर ऑर्गेनाइजेशन, आईएसओ) ने पिछले साल नवंबर में दुनिया भर में 170.308 मिलियन टन चीनी के उत्पादन का अनुमान लगाया था तो फरवरी तक आते -आते यह अनुमान घटकर 168.438 मिलियन टन रह गया।
चीनी के निर्यात में जो बढोतरी आई है उसमें सरकारी सहायता की बड़ी भूमिका रही है। जो मिल समुद्र तट के किनारे हैं उनको प्रति टन 1,350 रुपये बतौर भाड़े के खर्च करने पड़े तो उन मिलों को जो समुद्र तट के किनारे नहीं हैं उनको भाड़े के तौर पर केवल 1,450 रुपये प्रति टन ही खर्च करने पड़े।
जैन ,भारतीय चीनी आयात-निर्यात निगम (इंडियन शुगर एक्सिम कॉर्पोरेशन, आईएसईसी) के सदस्य सचिव भी हैं। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में कुछ चीनी मिलों के हाथ खींचने के बावजूद भी निर्यात के ऑर्डर को पूरा कर दिया गया है। इन चीनी मिलों ने इस दौरान कीमतें बढ़ने की वजह से अपने आप को इससे अलग कर लिया।
उन्होंने बताया कि इस स्थिति मे हमें कुछ अन्य मिलों से अधिक कीमतों पर चीनी भी खरीदनी पड़ी लेकिन किसी भी अनुबंध को अधूरा नहीं छोड़ा गया है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले सालों में कच्ची चीनी निर्यात के मामले में सफेद चीनी से आगे ही रहेगी। जैन का कहना है कि भारत के पड़ोसी मुल्कों में कच्ची चीनी का 60 लाख टन से भी अधिक का बाजार है और अभी तक इस बाजार में ब्राजील का ही दबदबा रहा है।