छोटे स्तर की 50 से ज्यादा डिटर्जेंट और साबुन बनाने वाली इकाइयों को पिछले एक महीने से कच्चे माल की विभिन्न श्रेणियों की कीमतों में 34-45 फीसदी तक की गिरावट आने से राहत मिल गई है।
इन निर्माणकर्तोओं को कीमतों में ज्यादा बढ़ोतरी की वजह से काफी मुश्किलें आ रही थी। वही सरकार ने संरक्षण शुल्क में भी पिछले 18 महीने में बढ़ोतरी की। साबुन और सर्फ निर्माताओं की मानें तो जब ग्राहकों ने कम कीमत वाले मल्टीनेशनल कंपनी के उत्पादों के लिए अपना रुझान दिखाया, तब शहर में डिटर्जेंट बनाने वाले लगभग सभी ब्रांड की कीमतों को कम कर दिया गया।
उत्तर प्रदेश सोप मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन (यूपीएसएमए) के अध्यक्ष मिक्की मनचंदा का कहना है, ‘अब हमें यह उम्मीद है कि हम फिर से अपने परंपरागत ग्राहकों को आकर्षित करेंगे, जिनके लिए कीमतों के मुकाबले बेहतर पैकेजिंग और विज्ञापन का फंडा मायने नहीं रखता है।’ इन निर्माणकर्ताओं ने डिटर्जेंट साबुन के आकार को बढ़ा कर उसका फायदा ग्राहकों को देने की कोशिश की।
मनचंदा का कहना है, ‘हमलोगों को कई वजहों से पिछले एक साल में कीमतों में तीन दफा इजाफा करना पड़ा जिसका उलटा असर कारोबार पर पड़ा। अब कच्चे माल की कीमतों में गिरावट हो रही है और हमलोगों ने इसका लाभ ग्राहकों को देने के लिए सोचा है।’ साबुन की टिकिया जो 115 ग्राम रही है, उसे बढ़ा कर 150 ग्राम, 300 ग्राम और 500 ग्राम कर दिया गया है।
इसी तरह 600 ग्राम की टिकिया को बढ़ाकर 1 किलोग्राम कर दिया गया है और इसकी कीमत पहले की खुदरा कीमतों की तरह ही है। सागर डिटर्जेंट प्राइवेट लिमिटेड के मार्केटिंग मैनेजर दिलीप बजाज ने बिजनेस स्ट्रैंडर्ड का कहना है कि डिटर्जेंट के लिए मुख्य रूप से सोडा ऐश, लिनियर अलकाइल बेंजीन (एलएबी) की कीमतों में पिछले एक महीने में ज्यादा गिरावट देखी है।
उनका कहना है, ‘डिटर्जेंट की टिकिया बनाने में जिस तेल का इस्तेमाल किया जाता है उसकी कीमत 36 रुपये प्रति किलोग्राम से कम होकर 26 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है। एलएबी की कीमतें 98 रुपये प्रति किलोग्राम से कम होकर 58 रुपये तक हो गई हैं, इसकी वजह डोलोमाइट और एसिड स्लरी की कीमतों में तेजी से गिरावट होना है।’
पाम तेल भी साबुन का एक घटक होता है और इसकी कीमतों में भी 70-80 फीसदी तक की कटौती देखी गई है। मनचंदा का कहना है, ‘पाम तेल की कीमतें 750 डॉलर प्रति टन से कम होकर 425 डॉलर प्रति टन हो गया। एक दूसरे डिटर्जेंट निर्माणकर्ता आशुतोष पांडेय का कहना है कि एसिड स्लरी की कीमतें जो 14 लाख रुपये प्रति टैंकर थी जो अब कम होकर 7-8 लाख प्रति टैंकर हो गई है।
लगभग 60 फीसदी छोटी इकाईयों के उत्पादन का काम, उत्पादन लागत में बढ़ोतरी होने की वजह से रुक गया था। लेकिन अब दुकानें खुलने लगी हैं और इस उद्योग से जुड़े 1000 लोगों को रोजगार मिला हुआ है।
शहर में हर महीने 50 से ज्यादा डिटर्जेंट निर्माण की इकाइयां 1.5 टन से ज्यादा डिटर्जेंट पाउडर और टिकिया का उत्पादन कर रही हैं। कीमत के वाजिब होने की वजह से कई छोटे खुदरा विक्रेताओं और वितरकों को डीलरों से नए ऑर्डर मिल रहे हैं।
