केंद्र सरकार ने दर्दनिवारक, विटामिन, मधुमेह और उच्च रक्तचाप आदि की दवाओं सहित 300 सामान्य ब्रांडों के लिए क्यूआर कोड अनिवार्य करने का निर्णय किया है। इससे दवाओं का असली होना और उसके बारे में जानकारी सुनिश्चित की जा सकेगी।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह व्यवस्था लागू करने के लिए औषधि नियम, 1945 में आवश्यक संशोधन किए हैं। मार्च में मंत्रालय ने औषधि विभाग से 300 दवा ब्रांड छांटने के लिए कहा था, जिन्हें अनिवार्य क्यूआर कोड व्यवस्था में के दायरे में लाया जा सके।
राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने उन 300 दवाओं की सूची तैयार की है, जिनके लिए क्यूआर कोड लागू किया जाएगा। इनमें दर्दनिवारक, विटामिन, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, गर्भनिरोधक आदि की दवाएं हैं, जिनका व्यापक तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
डोलो, एलेग्रा, एस्थलिन, सैरिडॉन, लिमसी, कालपोल, कॉरेक्स, थायरोनॉर्म, अनवॉन्टेड 72 जैसे चर्चित ब्रांड इसके लिए चिह्नित किए गए हैं। बड़े पैमाने पर बिकने वाले इन ब्रांडों को उनके सालाना कारोबार मूल्य के आधार पर छांटा गया है।
14 जून को जारी मसौदा अधिसूचना में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि इन फॉर्मूलों पर उत्पाद बनाने वाली कंपनियों को उत्पाद के प्राथमिक पैकेजिंग लेबल पर बार कोड या क्विक रिस्पॉन्स कोड (क्यूआर कोड) प्रिंट करना या चिपकाना होगा। द्वितीयक पैकेज लेबल में प्रामाणिकता की जानकारी के लिए सॉफ्टवेयर ऐप्लिकेशन आधारित डेटा होगा। संग्रहीत किए गए डेटा या जानकारी में यूनीक उत्पाद पहचान कोड, दवा का जेनरिक नाम, ब्रांड नाम, विनिर्माता का नाम और पता, बैच नंबर, विनिर्माण की तारीख, एक्सपायरी की तारीख और विनिर्माता का लाइसेंस नंबर शामिल होगा।
इस साल की शुरुआत में केंद्र ने कहा था कि भारत में बनाए जाने वाले या आयातित सक्रिय औषधि घटक (एपीआई) या बल्क दवाओं के हर लेबल पर क्यूआर कोड होना चाहिए और पैकेजिंग पर संग्रहीत डेटा या जानकारी होनी चाहिए, जिसे सॉफ्टवेयर ऐप्लिकेशन के जरिये पढ़ा जा सके और उस पर पूरी नजर रखी जा सके।
उद्योग से जुड़े एक शख्स ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘चिह्नित किए गए कुछ ब्रांड का खुदरा मूल्य काफी कम है। उदाहरण के लिए कुछ सामान्य दर्दनिवारक, विटामिन और मधुमेह की दवा जैसे मेटफॉर्मिन। ऐसे में क्यूआर कोड लागू करने के लिए पैकेजिंग में बदलाव करने से विनिर्माताओं को अतिरिक्त खर्च करना पड़ेगा। छोटे विनिर्माताओं के लिए यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है।’
हालांकि उन्होंने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा कि चर्चित ब्रांड को नकली दवाओं की समस्या से भी जूझना पड़ता है। ऐसे में यह नकली दवाओं के चलन को रोकने की दिशा में अच्छा कदम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में बिकने वाली नकली दवाओं में से करीब 35 फीसदी भारत से आती हैं।
