भारत को उम्मीद है कि निजी कंपनियों के मालिकाना वाली कोयला खदानों से 2030 तक 35 से 40 लाख टन सालाना कोयले का उत्पादन होगा। कोयला मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी देते हुए कहा कि इससे भारत की कोयले के आयात पर निर्भरता कम हो सकती है।
चीन के बाद भारत कोयले का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। अदाणी इंटरप्राइजेज और वेदांत जैसी निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए पहली बार 2020 में यह क्षेत्र खोला गया। कोयला के उपभोक्ता वर्षों से इसे निजी क्षेत्र के लिए खोलने की लॉबीयिंग कर रहे थे।
घरेलू उत्पादन बढऩे से कोयले का आयात कम हो सकता है। ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका भारत के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता हैं और कुल आयात में इन दोनों की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत से ज्यादा है। ज्यादा वैश्विक दाम के कारण भारत का आयात हाल के महीनों में कम हुआ है और कोल इंडिया पर निर्भरता बढ़ी है।
सरकारी खनन कंपनी कोल इंडिया की भारत के घरेलू उत्पादन में 80 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी है और 2021-22 में इसने 67 लाख टन उत्पादन का लक्ष्य रखा है। कोयला मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव एम नागराजू ने कहा कि वह उम्मीद कर रहे हैं कि हाल में सरकारी फर्मों के साथ निजी क्षेत्र को आवंटित कोयला खदानों के कारण 2021-22 में कोयले का उत्पादन बढ़कर 80 से 100 लाख टन हो जाएगा।
इंडियन कोल मार्केट कॉन्फ्रेंस में नागराजू ने कहा कि इन खदानों से कोयले का उत्पादन मार्च 2023 को समाप्त वर्ष के दौरान 60 प्रतिशत बढ़कर 130 से 135 लाख टन होने की संभावना है। भारत ने निजी क्षेत्र को खनन के लिए 42 खदानें आवंटित की हैं, जिनकी सालाना क्षमता 860 लाख टन है।
