पिछले साल जुलाई में लॉकडाउन खत्म होने के बाद से लगातार तेजी के बाद अधिक आपूर्ति के कारण लौह एवं इस्पात की कीमतें कम होने लगी हैं। जनवरी के मध्य से कीमतों में गिरावट की शुरुआत हो गई थी। द्वितीयक इस्पात उत्पादकों ने लॉन्ग उत्पादों की कीमतें 7,000 से 8,000 रुपये प्रति टन से घटा दी थी और उसके बाद फरवरी में प्राथमिक उत्पादकों ने कीमतों में 2,000-3,500 रुपये प्रति टन की कटौती की है।
जेएसडब्ल्यू स्टील के निदेशक (वाणिज्यिक एवं विपणन) जयंत आचार्य ने कहा कि कीमतों में नरमी का मुख्य कारण घरेलू बाजार में लॉन्ग उत्पादों की आपूर्ति में वृद्धि है। उन्होंने कहा, ‘पहली तिमाही में लॉन्ग उत्पाद की आपूर्ति 70 लाख टन से कम रही थी। जबकि तीसरी तिमाही में आपूर्ति बढ़कर 1.4 करोड़ टन हो गई। लॉन्ग उत्पाद के निर्यात में भी कमी आई है। तीसरी तिमाही में निर्यात 3,00,000 टन से घटकर 2,40,000 टन रह गया। कुल मिलाकर घरेलू बाजार में उपलब्धता बढ़ी है।’
आचार्य ने बताया कि द्वितीयक क्षेत्र में भी तेजी आई है। उन्होंने कहा, ‘द्वितीयक क्षेत्र के लिए महत्त्वपूर्ण समझी जाने वाली लौह अयस्क की आपूर्ति में भी वृद्धि हुई है जिससे उनका उत्पादन भी बेहतर हुआ है। भारत में बाइलेट का निर्यात पहली तिमाही में 23 लाख टन था जो घटकर तीसरी तिमाही में 11 लाख टन रह गया। इन सब कारकों से बाजार में लॉन्ग उत्पादों की आपूर्ति बढ़ गई।’ पिछले कई महीनों से इस्पात की कीमतें सुर्खियों में रही हैं। जनवरी में घरेलू हॉट रोल्ड कॉइल (एचआरसी) की कीमतें 58,000 रुपये प्रति टन की सर्वकालिक ऊंचाई पर पहुंच गई थीं। हालांकि जून 2020 के अंत में वह घटकर 36,250 रुपये प्रति टन रह गया। समझा जाता है कि भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग बाजार में कथित सांठगांठ की जांच कर रहा है।
इस्पात उत्पादकों का कहना है कि वैश्विक इस्पात की कीमतों में कहीं अधिक वृद्धि हुई है। वैश्विक कीमतों में नरमी आने के साथ ही घरेलू कीमतें भी अपने उच्च स्तर से नीचे आने लगी हैं। न केवल इस्पात बल्कि पूरी शृंखला में नरमी दिखने लगी है।
लौह अयस्क का उत्पादन करने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी एनएमडीसी ने कीमतों में कटौती की है जो 7 फरवरी से प्रभावी है। एनएमडीसी की संशोधित कीमतें 5,100 रुपये प्रति टन लंप अयस्क (65.5 फीसदी) और 4,210 रुपये प्रति टन लौह अयस्क फाइन (64 फीसदी) हो गई हैं।
