गेहूं के बाद अब केंद्र सरकार आटे के निर्यात पर भी अंकुश लगा सकती है। चीनी की ही तर्ज पर सभी हिस्सेदारों के लिए पंजीकरण अनिवार्य किया जा सकता है। बहरहाल बाजार से जुड़े सूत्रों ने कहा कि पूरी तरह से प्रतिबंध लगाए जाने की संभावना नहीं है।
गेहूं के निर्यात पर 13 मई को प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से आटे की खुदरा कीमत 1 से 3 रुपये प्रति किलो तक कम हुई है, इसके बावजूद निर्यात पर अंकुश लगाने पर विचार चल रहा है। वहीं गेहूं के अन्य उत्पादों पर भी छोटे मोटे प्रतिबंध लग सकते हैं।
सूत्रों ने कहा कि निर्यात पर प्रतिबंध के पीछे यह सुनिश्चित करना है कि रातों रात गायब हो जाने वालों पर प्रतिबंध लगाया जा सके। साथ ही बाजार में तेजी से धन कमाने की इच्छा रखने वाले लोग गेहूं के निर्यात को धत्ता बताते हुए असमान्य मात्रा में गेहूं के आटे का निर्यात न कर सकें।
सूत्र ने कहा, ‘सरकार गेहूं के आटे के निर्यातकों के लिए एक्सपोर्ट रिलीज ऑर्डर (ईआऱओ) की तर्ज पर कुछ सोच सकती है, जैसा कि उसने चीनी निर्यातकों के लिए किया है, जिससे कि सिर्फ सही कारोबारी ही इस कारोबार में प्रवेश कर सकें।’
कुछ खबरों में कहा गया है कि भारत सामान्यतया अप्रैल से जून तक हर महीने 6,000 से 8,000 टन गेहूं के आटे का निर्यात करता है और यह प्रतिबंध के बाद बढ़कर करीब 1,00,000 टन हो गया। हालांकि इसकी स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो सकी है।
हालांकि फ्लोर मिलर्स का एक वर्ग इस तरह के किसी प्रतिबंध के पक्ष में नहीं है, जिसके कारण अनावश्यक रूप से एक और स्तर पर नियमन का बोझ बढ़ जाएगा।
फ्लोर मिलर्स एसोसिएशन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ’साफ कहें तो हमें निर्यात पर प्रतिबंध की कोई बड़ी वजह नजर नहीं आती। गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध के बाद कीमतों में कमी आई है। आटे के कच्चे माल गेहूं की पर्याप्त उपलब्धता भी है।’ वित्त वर्ष 22 में भारत के गेहूं के आटे का निर्यात तेजी से बढ़ा है। वित्त वर्ष 22 में भारत ने रिकॉर्ड 70 लाख टन गेहूं का निर्यात किया है, जो करीब 2.12 अरब डॉलर का है। मूल्य के हिसाब से यह पिछले साल की समान अवधि की तुलना में करीब 274 प्रतिशत ज्यादा है।
