भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत राष्ट्रीय अनार अनुसंधान केंद्र (एनआरसीपी) सोलापुर के शोधकर्ताओं की एक टीम ने अनार की सबसे लोकप्रिय किस्म ‘भगवा’ की ‘जीनोम सिक्वेंसिंग’ पूरा करने में कामयाबी हासिल की है। बागवानी विज्ञान के लिए यह एक क्रांतिकारी विकास है।
छह वर्षों के कठिन परिश्रम से जीनोम सिक्वेंसिंग को पूरा किया गया है जो अनार से संबंधित कई तरह के रहस्य खोल सकती है। अनार में मौजूद पोषक तत्त्वों की भरमार और बाजार में इसकी भारी मांग के कारण इसे कभी-कभी अद्भुत फल भी कहा जाता है।
इन रहस्यों में ‘भगवा’ अनार की मिठास, बीज की कोमलता या फल के रंग के लिए जिम्मेदार जीन की पहचान करना और रोग और कीट प्रतिरोध और फल के विस्तार के लिए जिम्मेदार जीन की पहचान शामिल हैं। जीनोम सिक्वेंसिंग किसी फसल की नई किस्मों के विकास की दिशा में पहला कदम है।
इस वैज्ञानिक उपलब्धि का क्या महत्त्व है?
अनार का एक बहुत ही संकीर्ण आनुवंशिक आधार है जिसमें पारंपरिक प्रजनन कार्यक्रमों का समर्थन करने के लिए लोगों के बीच में सीमित जीनोमिक जानकारी उपलब्ध है। जो अनार के सुधार और नई उन्नत किस्मों के नियोजित विकास में एक गंभीर बाधा है।
इसके अलावा पारंपरिक प्रजनन रणनीतियों के माध्यम से वृक्ष प्रजनन में बहुत लंबा समय लगता है, यहां तक कि कभी-कभी एक बेहतर किस्म विकसित करने में 20 साल से भी अधिक का समय लगता है।
इनके परिणामस्वरूप एक ही किस्म के तहत लगभग पूरी व्यावसायिक खेती होती है, जिससे एकाधिकार संस्कृति बढ़ रही है। बहुत कम संख्या में ऐसी किस्में हैं जो प्रमुख बीमारियों, कीटों और जलवायु चुनौतियों की प्रतिरोधी हैं। उपयोगकर्ता उद्योग और निर्यात बाजार के लिए विशिष्ट उद्देश्यों के अनुरूप नई किस्मों का विकास नहीं करती हैं।
इसलिए कीटों से होने वाले नुकसान और अन्य महत्त्वपूर्ण बागवानी लक्षणों की प्रतिक्रिया के लिए जिम्मेदार जीनों की पहचान करने के लिए पर्याप्त जीनोमिक जानकारी और अनार सुधार कार्यक्रम को तेजी से ट्रैक करने के लिए यह परियोजना लगभग छह साल पहले एनआरसीपी द्वारा शुरू की गई थी।
आखिर अनार ही क्यों?
भारत विश्व के सबसे बड़े अनार उत्पादक देशों में से एक है। यह भारत में सबसे तेजी से उगने वाले फलों में से एक है। पिछले 10 वर्षों में रकबे में 170 फीसदी, उत्पादन में 340 फीसदी और निर्यात में 264 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। अनार अर्ध-शुष्क कटिबंधीय क्षेत्रों में किसानों की आय बढ़ाने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। जहां कठोर मौसम की स्थिति, उप-इष्टतम मिट्टी और सिंचाई के लिए पानी की कम उपलब्धता है।
वर्तमान में कुछ अनुमानों के अनुसार भारत में अनार की फसल 25 लाख कृषि परिवारों की आजीविका का साधन है। इसे सबसे अधिक पोषक तत्वों से भरपूर फलों में से एक माना जाता है।
जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए अनार की घरेलू किस्म ‘भगवा’ को ही चुना गया क्योंकि भारत में अनार के कुल रकबे में इसकी हिस्सेदारी 85 फीसदी है। पिछले साल इसका उत्पादन 25 लाख टन था।
वर्ष 2021-22 में भारत का कुल अनार निर्यात करीब 1 लाख टन था जिसमें ‘भगवा’ किस्म से करोड़ो में विदेशी मुद्रा अर्जित की गई।
इस किस्म में अनार के सभी अनुकूल बागवानी गुण हैं, जैसे गहरा लाल छिलका और गुलाबी रंग, मुलायम बीज, उच्च उपज और अच्छी रखने की गुणवत्ता।
क्या यह विश्व स्तर पर पहली बार है कि अनार में इस तरह की जीनोम सिक्वेंसिंग का प्रयास किया गया है?
वैज्ञानिकों का कहना है कि शायद ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, मगर निश्चित रुप से यह एक असाधारण कदम है क्योंकि अनार में आमतौर पर जीनोम सिक्वेंसिंग नहीं की जाती है।
जीनोम सिक्वेंसिंग के बाद आपका अगला कदम क्या होगा?
जीनोम सिक्वेंसिंग ने अनार के लिए संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। इससे अनार की ‘हाईब्रिड किस्म’ के विकास में मदद मिलेगी और इसने जीन संपादन की दिशा में कदम उठाने की संभावनाओं को बढ़ा दिया है। जीन संपादन बीज प्रौद्योगिकी में सबसे नवीनतम तकनीक है।
क्या एनआरसीपी अकेले इस परियोजना में शामिल थी या उसने किसी से मदद ली?
जीनोम सिक्वेंसिंग हैदराबाद स्थित जीनोमिक्स लैब ‘न्यूक्लियोम इंफॉर्मेटिक्स’ में की गई। न्यूक्लियोम एशिया की एकमात्र प्रयोगशाला है जो दुनिया के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित जीनोमिक्स कार्यक्रम ‘द वर्टेब्रेट जीनोम प्रोजेक्ट’ से संबद्ध है, जो 70,000 कशेरुक जीनोमों की सिक्वेंसिंग करती है। न्यूक्लियोम इंडो-कोरियन प्रोजेक्ट के तहत विरासत में मिली रेटिनल बीमारियों के लिए भारतीय जनसंख्या आधारित जीनोमिक्स चिप भी विकसित कर रहा है। पिछले साल केंद्र की एक नई लैब का उद्घाटन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया था।
