देश में कोयला से चलने वाले आधे संयंत्र अपने द्वारा उत्पादित फ्लाई ऐश के इस्तेमाल के तय मानकों का पालन नहीं करते हैं। सेंटर फार साइंस ऐंड एनवायरमेट (सीएसई) की हाल की रिपोर्ट में पाया गया है कि कुछ संयंत्रों में उनके उत्पादित प्लाई ऐश का 30-40 प्रतिशत भी इस्तेमाल नहीं हो पाता है।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की 1999 की एक अधिसूचना में फ्लाई ऐश के इस्तेमाल का लक्ष्य तय किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पिछले दशक में कोयले की खपत और कोयला बिजली संयंत्रों से फ्लाई ऐश उत्पादन करीब 80 प्रतिशत बढ़ा है। इस दशक में औसतन 35 प्रतिशत फ्लाईऐश का इस्तेमाल नहीं हो सका, इसकी वजह से राख की ढेर बढ़ रही है। कई इलाकों से 2010 और 2020 के बीच राख के कुछ बड़े ढेर के ढहने की घटनाएं हुईं और राख के असुरक्षित निपटान के मामले सामने आए हैं। ‘
भारत के कोयला बिजली संयंत्रों से सालाना फ्लाई ऐश का उत्पादन 2009-10 के 12.3 करोड़ टन से बढ़कर 2018-19 में 21.7 करोड़ टन हो गया है। सीईसई ने कहा है कि पुराना पड़ा फ्लाई ऐश मार्च 2019 तक 1.6 अरब टन हो गया है। 2012-13 से 2016-17 के बीच फ्लाई ऐश के इस्तेमाल की मात्रा 10 करोड़ टन के करीब पर स्थिर रही है। बहरहाल इसी अवधि के दौरान सालाना उत्पादन 15 करोड़ टन के पार चला गया है।
