बढ़ती लागत के मद्देनजर पेपर और पल्प इंडस्ट्री ने पिछले तीन महीने में अपने उत्पाद की कीमतों में 3 से 10 फीसदी की बढ़ोतरी की है और आने वाले दिनों में इसमें और बढ़ोतरी के आसार नजर आने लगे हैं।
हिंदुस्तान पेपर कॉरपोरेशन के डायरेक्टर (मार्केटिंग) नरसिम्हा राव ने कहा कि राइटिंग और प्रिंटिंग पेपर की कीमत में जनवरी से 500-1000 रुपये प्रति टन की बढ़ोतरी हुई है और प्रति स्क्वैयर मीटर (जीएसएम) के हिसाब से हुई बढ़ोतरी के चलते यह 46-47 हजार रुपये प्रति टन के स्तर पर पहुंच गई है।
हालांकि उन्होंने कहा कि लागत में जहां करीब 16 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है वहीं उत्पादकों ने कीमतों में 3 से 4 फीसदी का ही इजाफा किया है। उन्होंने कहा कि ऊर्जा और दूसरी लागतें बढ़ गई हैं।
बल्लारपुर
इंडस्ट्रीज लिमिटेड के असोसिएट वाइस प्रेजिडेंट और यूनिट हेड अशोक कुमार ने कहा कि पिछले दो महीने में कोयला और तेल दोनों ही 7-8 फीसदी महंगा हो गया है।
इंडस्ट्री के सूत्रों ने बताया कि लकड़ी के पल्प की कीमत 500 डॉलर प्रति टन से 750 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच गई है।
राव ने कहा कि नए वित्त वर्ष में कागज की मांग बढ़ेगी और अप्रैल मध्य या फिर मई तक राइटिंग व प्रिंटिंग पेपर की कीमत में एक हजार रुपये प्रति टन की बढ़ोतरी के आसार हैं।
इंडियन पेपर मैन्युफैक्चरिंग असोसिएशन (आईपीएमए) के प्रेजिडेंट और आईटीसी पेपरबोर्ड के चीफ इग्जेक्यूटिव प्रदीप दाभोले के मुताबिक डुप्लेक्स बोर्ड की कीमत में 10 फीसदी के उछाल की उम्मीद की जा रही है क्योंकि वेस्ट पेपर की कीमत में उछाल आया है और वेस्ट पेपर इस इंडस्ट्री का मुख्य कच्चा माल है।
पिछली तिमाही मे न्यूजप्रिंट में कुल मिलाकर 2000 रुपये प्रति टन की बढ़ोतरी देखी गई थी। इंडियन पल्प एंड पेपर टेक्निकल असोसिएशन (आईपीपीटीए) के प्रेजिडेंट और श्रेयंस इंडस्ट्रीज के इग्जेक्यूटिव डायरेक्टर व सीईओ अनिल कुमार के मुताबिक मुख्य कच्चा माल वेस्ट पेपर और लकड़ी केपल्प की बढ़ती कीमत केचलते दाम बढ़ रहे हैं।
वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न्यूजप्रिंट का भाव 100-150 डॉलर ऊंचा है और यह 800 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि भारत पर इसका असर अप्रैल से दिखाई देगा क्योंकि भारत अपनी न्यूजप्रिंट की कुल जरूरत का 50 फीसदी आयात करता है।
इसका मतलब हुआ कि अगली तिमाही में इसकी कीमत 11-12 फीसदी यानी 3-4 हजार प्रति टन की बढ़ोतरी होगी। हालांकि न्यूजप्रिंट की सालाना जरूरतें 20-21 लाख टन होने का अनुमान है लेकिन इसमें 15-20 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद जताई जा रही है।
इस बार के बजट में उत्पाद कर में 4 फीसदी की कटौती की गई है, लेकिन शायद ही इसका लाभ उपभोक्ता तक पहुंचे। बढ़ती लागत का हवाला देते हुए कंपनियां कीमत में कटौती शायद ही करे। हां, लागत में बढ़ोतरी का भार हल्का करने के लिए ये कंपनियां कीमत जरूर बढ़ा देंगी।
दाभोले ने कहा कि उत्पाद कर में कटौती से कंपनियों को थोड़ी राहत मिलेगी। मतलब साफ है, आने वाले दिनों में राइटिंग पेपर, डूप्लेक्स बोर्ड, कोटेड पेपर आदि की कीमतें कम नहीं होंगी। दाभोले ने कहा कि कीमतों का मामला डिमांड-सप्लाई पर निर्भर करेगा।