देश के बासमती चावल उत्पादक अब पाकिस्तान के बासमती उत्पादक के हाथों बाजार पर से अपनी पकड़ खोने को लाचार हैं।
इन उत्पादकों को पाकिस्तानी उत्पादकों के मुकाबले 400 डॉलर प्रति टन का नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारतीय बासमती चावल के निर्यात पर 200 डॉलर प्रति टन निर्यात कर लगता है और दूसरा कारण यह है कि पाकिस्तान में बासमती उत्पादन का लागत मूल्य भारतीय उत्पादकों के मुकाबले काफी कम है।
भारतीय बासमती चावल निर्यातक जुलाई से ही इसमें गिरावट दर्ज कर रहे हैं। बड़े खरीदारों जैसे सऊदी अरब और ईरान ने भी इसकी बढ़ती कीमत के कारण इसे खरीदना बंद कर दिया है। देश के एक प्रमुख बासमती उत्पादक कोहिनूर फूड्स के संयुक्त प्रबंध निदेशक गुरनाम अरोड़ा का कहना है कि हमारे ग्राहक इतनी ऊंची कीमत पर बासमती चावल खरीदने के इच्छुक नहीं है।
जब भी हम बासमती चावल का निर्यात करते हैं, तो 200 डॉलर प्रति टन निर्यात कर देने की वजह से यह काफी महंगा हो जाता है। इस कारण से हमारे ग्राहक अब पाकिस्तानी बासमती उत्पादकों को प्राथमिकता देने लगे हैं। यह सब सरकार द्वारा कर लगाये जाने की वजह से हो रहा है। जब से यह कर लगाया गया है, तब से हमारा निर्यात 30-40 प्रतिशत गिर गया है। सरकार ने 29 अप्रैल से बासमती चावल के निर्यात पर 8000 रुपये प्रति टन के हिसाब से कर लगा रही है। भारत 2007-08 में 11.8 लाख टन बासमती चावल का निर्यात करती थी, जिसकी कीमत 4,334 करोड रुपये थी।
इंडिया गेट ब्रांड के नाम से चावल बेचने वाली कंपनी केआरबीएल के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अनिल मित्तल ने कहा कि भारतीय बासमती चावल की बढ़ी हुई कीमत के कारण अंतरराष्ट्रीय खरीदार खुश नहीं हैं। एक तरफ जहां भारतीय निर्यातक कमी की मार झेल रहे हैं, वहीं पाकिस्तानी बासमती चावल निर्यातकों की चांदी है। हालांकि जून से बासमती चावल की कीमतों को 2000 डॉलर प्रति टन से घटाकर 1700 डॉलर प्रति टन कर दिया गया , लेकिन फिर भी हमारे पास खरीदार नहीं मिल रहे हैं।
औद्योगिक कंपनियों का कहना है कि निर्यात कर की वजह से निर्यात प्रभावित होगा और उसका असर किसानों पर भी पड़ेगा। सितंबर में धान की कटाई शुरू होने वाली है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि मिल वाले 8000 रुपये प्रति टन के निर्यात कर की भरपाई किसानों से ही करेंगे। मित्तल ने कहा कि जब से हम चावल खरीदना शुरू करते हैं, तब से हमारे ऊपर 8000 रुपये प्रति टन का बोझ लद जाता है। हमलोग निर्यात में प्रति किलो के हिसाब से 8 रुपये का घाटा सहने की स्थिति में नहीं हैं।
उद्योगों के अनुमान के मुताबिक चूंकि पिछले साल बासमती उत्पादकों को अच्छी आमद हुई थी, इसलिए इस बार इसकी बुवाई में 15-20 प्रतिशत इजाफा हो सकता है। टिल्डा राइसलैंड के निदेशक आर एस शेषाद्रि कहते हैं कि बासमती चावल पर जो निर्यात कर लगाया जा रहा है, उससे धनी लोगों को तो परेशानी नहीं होती है, लेकिन बेचारे किसान इसमें पिस जाते हैं। अब वह वक्त आ गया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में बासमती के निर्यात कर को उठा कर किसानों को राहत देने के बारे में भी सोचा जाए।