पेट्रोलियम निर्यात करने वाले देशों के समूह ओपेक को 2012 तक अपने उत्पादन को बढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है।
वूड मकेनजी कंसल्टेंट्स के मुताबिक ओपेक को वर्ष 2012 तक दुनिया में होने वाली कच्चे तेलों की कुल मांग के 50 प्रतिशत की आपूर्ति करनी पड़ेगी। फिलहाल ओपेक कुल मांग के 40 फीसदी की आपूर्ति करता है। इस मामले के विशेषज्ञ जॉन वाटरलो के मुताबिक ओपेक को 2012 तक अपने उत्पादन में प्रतिदिन 20 से 30 लाख बैरल की बढ़ोतरी करनी पड़ेगी।
अगले पांच सालों में कच्चे तेल की मांग में एक करोड़ बैरल की बढ़ोतरी होने की संभावना है। तब इस मांग की अधिकतर आपूर्ति ओपेक से न होकर किसी और संस्था के माध्यम से होगी। और तब इस मांग की आपूर्ति के लिए तरल गैस का सहारा लेना पड़ेगा।
वाटरलू के मुताबिक उस समय तक इसकी मांग निश्चित रूप से काफी बढ़ जाएगी लेकिन इसकी आपूर्ति में मांग बढ़ने के बावजूद कोई खास दिक्कतें नहीं आएंगी। ओपेक ने गत सप्ताह गैर सदस्य देशों के लिए अपने उत्पादन में कटौती की घोषणा की है।
ओपेक का मानना है कि पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका व मैक्सिको के उत्पादन में कमी आ रही है। मकेनजीन का अनुमान है कि सोवियत संघ से जुड़े देशों में 2012 तक कच्चे तेल के उत्पादन में बढ़ोतरी हो सकती है। साथ ही कनाडा के ऑयल सैंड उद्योग व लैटिन अमेरिका के उत्पादन में भी बढ़ोतरी की संभावना है।