चीन में चल रहे ओलंपिक खेलों की वजह से देश के केमिकल कारोबार के हालात आईसीयू में भर्ती मरीज की तरह हो चुके हैं। पिछले छह महीनों के भीतर ही देश केमिकल कारोबार का लगभग 40 फीसदी बाजार सिमट चुका है।
देश के प्रमुख औद्योगिक शहरों के केमिकल्स कारोबारियों का कहना है कि चीन में ओलंपिक खेलों के आयोजन के चलते पर्यावरण स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए चीन ने केमिकल्स के निर्यात में रोक लगा दी है। इस कारण देश में केमिकल्स के लिए उपलब्ध कच्चे माल की कीमतों में 50 से 80 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई है।
एनसीआर की केमिकल्स असोसिएशन के अध्यक्ष मुन्ना भाई ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि पर्याप्त मात्रा में केमिकल्स की उपलब्धता न होने के कारण हमारे देश में बीटा नेफ्थाल, एनीलीनाइल तेल, कास्टिक सोडा, सोडा ऐश, मेटाहीलिक एसिड, ऐसिटिक एसिड, फार्मिक एसिड, ब्यूटानॉल और टॉयोलीन जैसे केमिकल्स का चीन से भारी मात्रा में आयात किया जाता है।
लेकिन आयात में पांबदी होने के कारण कच्चे माल की कीमत में लगभग 70 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो गई है। कच्चे माल की कीमतों में हो रही बढ़ोतरी और अन्य समस्याओं को देखते हुए केमिकल्स कारोबार के हालात खस्ता हो चुके है।
कानपुर की केमिकल कंपनी नॉदर्न अलकाली प्राइवेट लिमिटेड के नितिन सोनी ने बताया कि चीन से केमिकल्स का आयात रुकने के बाद हमें यूरोपीय और अमेरिकी देशों से के मिकल्स का आयात करना पड़ रहा है। परिवहन लागत बढ़ जाने के कारण इन देशों से होने वाला आयात चीन की अपेक्षा 20 से 25 फीसदी मंहगा पड़ रहा है। इसकी वजह से हमारे उत्पादों की कीमत बढ़ रही है और मांग कम हो रही है।
हमें उम्मीद है कि अक्टूबर तक हालात में सुधार हो जाएगा। गुडगांव स्थित एक निजी केमिकल्स फैक्ट्री के निदेशक सौरभ गुप्ता ने को बताया कि हालात सिर्फ आयात के रुक जाने के कारण ही खराब नहीं है। सरकार द्वारा लघु उद्योगों के लिए अपनाई जाने वाली नीतियां भी किसी रोड़े से कम नहीं है।
केमिकल्स उद्योग के लिए कारोबारी को प्रदूषण लाइसेंस, फैक्ट्री लाइसेंस, सुरक्षा लाइसेंस, मशीनरी सेफ्टी लाइसेंस, लेबर सेफ्टी लाइसेंस और इसके जैसे ही अन्य सरकारी मानदंडों को पूरा करना होता है। इनका हमें सालाना नवीनीकरण भी कराना पड़ता है। सामाजिक और वातावरणीय जागरुकता को देखते हुए यह जरुरी भी है। लेकिन ऐसे में सरकारी महकमा हमें लालफीताशाही का शिकार बना लेता है।
यही नहीं, हमारे पास आर्थिक संसाधनों की पहले से ही कमी है। ब्याज दरों के महंगे होने के कारण अब बैकों से भी ऋण लेना हमारे लिए उतना आसान नहीं रह गया है। ऐसे में सरकारी अधिकारी हमारे साथ सहयोग की नीति नहीं अपनाते है तो हमारे हालात खराब हो जायेंगे। नोएडा के केमिकल्स कारोबारियों का कहना है कि कच्चे माल की कीमतो में हो रहे उछाल और कड़ी मौद्रिक नीतियों से लघु उद्योगों का पहले ही बेड़ा गर्क हो चुका हे। ऐसे में अगर सरकार हमारे लिए सही नीतियां नहीं बनाती है तो केमिकल्स कारोबार का बाजार से गायब होना लगभग तय है।
केमिकल्स की कीमतों में बढ़ोतरी
जून 2008 वर्तमान कीमत
टॉयोलीन 11000 प्रति ड्रम 14000 प्रति ड्रम
ब्यूटानॉल 14000 प्रति ड्रम 22000 प्रति ड्रम
ऐसिटिक एसिड 40 प्रति लीटर 50 प्रति लीटर
फार्मिक एसिड 55 प्रति लीटर 80 प्रति लीटर
सोडा ऐश 18 प्रति किलो 24 प्रति किलो
क्रोम पाउडर 35 प्रति किलो 80 प्रति किलो (कीमतें रुपये में)