कीमतों पर नियंत्रण के लिए सरकार ने भले ही वनस्पति तेलों के निर्यात पर पाबंदी लगा दी है लेकिन बाजार विशेषज्ञों के मुताबिक इससे घरेलू बाजार में बढ़ रही इसकी कीमत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में पहले से ही वनस्पति तेलों की कमी है। और देश में वनस्पति तेलों की कुल जरूरत की
सरकार ने एक साल के लिए वनस्पति तेलों के निर्यात पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगा दी है। यह पाबंदी 17 मार्च से लागू की गई है जो अगले साल 16 मार्च तक लागू रहेगी। घरेलू बाजार में वनस्पति तेलों की कीमत में जनवरी से लेकर अबतक 10 से 28 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। गत 2 जनवरी को सोयाबीन रिफाइन तेल की कीमत 54000 रुपये प्रति टन थी जो फिलहाल में बढ़ोतरी के साथ 69,000 रुपये प्रतिटन के स्तर पर पहुंच गई है। इस दौरान इसकी कीमत में 27.78 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
उसी तरीके से मूंगफली तेल की कीमत में 13.08 फीसदी, रेपसीड तेल की कीमत में 10.34 फीसदी, पामोलीन आरबीडी की कीमत में 25.10 फीसदी व सूरजमुखी तेलों की कीमत में 19.69 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। वनस्पति तेल के विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार के इस फैसले का कोई मतलब नहीं है। और इससे बाजार में चालू कीमतों में कोई अंतर नहीं आने वाला है। सॉलवेंट्स एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसइएआई) के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता के मुताबिक खाद्य तेलों का निर्यात देश से बहुत ही कम मात्रा में किया जाता है।
देश से नारियल तेल का निर्यात 5,000 से 10,000 टन के बीच किया जाता है। और सरसों तेल की का निर्यात सिर्फ सीमा से सटे देशों में होता है। उन्होंने बताया कि तेलों के निर्यात पर पाबंदी से तत्काल रूप से बाजार पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ेगा। मंगलवार को तेल की कीमत में जो गिरावट देखी गई वह मलेशिया के बाजार में गिरावट के कारण आई न कि सरकार के फैसले की बदौलत। जिंस जानकार अमोल तिलक के मुताबिक वनस्पति तेल के निर्यात पर पाबंदी के इस सरकारी फैसले में कई दम नहीं है। इससे बाजार के बुनियाद में कोई फर्क नहीं आएगा। सिर्फ भावनात्मक रूप से बाजार पर फर्क पड़ने की उम्मीद की जा सकती है।