दुनिया में कपास के दूसरे सबसे बड़े निर्यातक भारत से कपास के निर्यात में इस साल कमी के आसार हैं। यह इसलिए कि सरकारी हस्तक्षेप के चलते कपास की घरेलू कीमत मौजूदा सीजन में इसके अंतरराष्ट्रीय भाव से ज्यादा हैं।
भारतीय कपास निगम के प्रबंध निदेशक सुभाष ग्रोवर के मुताबिक, 30 सितंबर को समाप्त सप्ताह में कपास का निर्यात पिछले साल की तुलना में 85 लाख गांठ कम रहने का अनुमान है। मालूम हो कि निगम देश में कपास का सबसे बड़ा खरीदार है। उनके अनुसार, कपास की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कीमतों में कोई समानता नहीं है।
स्थितियां ऐसी नहीं कि फिलहाल इसका निर्यात हो सके। उल्लेखनीय है कि इस बार सितंबर में सरकार ने कपास के न्यूनतम खरीद मूल्य में 48 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है। जानकारों के अनुसार, लोकसभा के आम चुनाव नजदीक होने के चलते सरकार की कोशिश है कि एक करोड़ कपास उत्पादकों को उनकी उपज का भरपूर लाभ मिले।
किसानों के पास वोट की ताकत खूब होने के चलते सरकार किसानों से चावल, गेहूं, तिलहन और कपास की खरीदारी इस समय ऊंची कीमत पर कर रही है। गौरतलब है कि न्यू यॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज में कपास के वायदा भाव में इस साल अब तक 39 फीसदी की कमी हो चुकी है।
मुंबई स्थित नैशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) में सोमवार को कपास का वायदा भाव प्रति कैंडी 22,597 रुपये (एक कैंडी=356 किलोग्राम) तक चला गया, जो कि इसके मौजूदा अंतरराष्ट्रीय भाव से करीब 47 फीसदी ज्यादा है।
इंदौर स्थित टीडीएन फाइबर्स लिमिटेड के निदेशक लक्ष्मी नारायण गुप्ता ने बताया कि धागा उत्पादक और अन्य उपभोक्ता केवल दैनिक जरूरतों के लिए ही इसकी खरीद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इसके कारोबारी और निवेशक फिलहाल कपास की खरीद से दूर हैं, क्योंकि इसकी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कीमतों के बीच खासा फर्क है।
पिछले हफ्ते 20 हजार मिलों का प्रतिनिधित्व करने वाली भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ के उपाध्यक्ष शिशिर जयपुरिया ने बताया कि कपास की कीमतें बढ़ने से उद्योगों के सामने कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। उन्होंने बताया कि यहां का कपास महंगा होने से बाजार में प्रतिस्पर्द्धी नहीं रह गया है।
ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजार में हम अपने ग्राहकों को लगातार खोते जा रहे हैं। संगठन के चेयरमैन आर के डालमिया ने उम्मीद जताई कि मौजूदा हालत में साल अंत तक करीब 7.5 अरब डॉलर का कपड़ा निर्यात हो सकेगा जबकि पिछले साल करीब 9 अरब डॉलर का कपड़ा निर्यात हुआ था।
दूसरी ओर कपास सलाहकार बोर्ड के मुताबिक, 30 सितंबर तक देश के कपास उत्पादन में करीब 2.2 फीसदी की वृद्धि का अनुमान है। पिछले साल इस अवधि तक जहां 3.15 करोड़ गांठों (एक गांठ=170 किलोग्राम) का उत्पादन हुआ था वहीं इस बार इसके 3.22 करोड़ गांठ तक पहुंचने का अनुमान है।
सोमवार को न्यू यॉर्क में दिसंबर महीने के आईसीई वायदा में 0.83 सेंट यानी 2 फीसदी की कमी हुई और यह प्रति पौंड 41.24 सेंट तक पहुंच गई। इससे पहले इसका वायदा भाव 19 जून 2002 के बाद 39.78 सेंट प्रति पौंड के निचले स्तर तक चला गया था। यही नहीं बीते अक्टूबर महीने के दौरान इसकी कीमत में 23 फीसदी की कमी दर्ज हुई जो अप्रैल 1996 के बाद महीने भर में कपास की कीमतों में हुई सबसे तेज कमी है।
कीमतें पहुंचीं छह साल के निचले स्तर पर
मांग में कमी के अनुमान के बीच अमेरिका में कपास का भाव पिछले छह साल के न्यूनतम स्तर तक चला गया है। अमेरिकी कृषि विभाग ने बताया कि इस साल 31 जुलाई तक दुनिया का कपास उत्पादन 11.93 करोड़ गांठ रहने का अनुमान है जो पिछले महीने के अनुमान से 2.4 फीसदी कम है।
कृषि विभाग ने इसके साथ ही लगातार पांच महीनों के लिए कपास की खपत अनुमान में कटौती की है। गौरलतब है कि पिछले साल पूरी दुनिया के मिलों ने करीब 12.34 करोड़ कपास गांठों का खपत किया था।
ऐसे में कपास की वैश्विक कीमतें साल भर में करीब 41 फीसदी कम हो गई हैं। जानकारों का अनुमान है कि आने वाले दिनों में इसकी खपत में और कटौती होगी। न्यू यॉर्क मकेंटाइल एक्सचेंज में दिसंबर महीने के वायदा भाव में करीब 3.7 फीसदी की कमी हुई और यह 40.5 सेंट प्रति पौंड तक चली गई।
हालांकि इससे पहले कीमतें खासी कम होकर 39.78 सेंट प्रति पौंड तक चली गई जो 2002 के बाद कपास की सबसे कम कीमत है। बाजार में कपास का वायदा भाव 4.8 फीसदी की तेजी के साथ 44.10 सेंट प्रति पौंड तक चला गया था।
जानकारों के मुताबिक, चीन में अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सरकारी पैकेज घोषित होने का बाजार पर असर पड़ा है। मालूम हो कि चीन दुनिया का सबसे बड़ा कपास उपभोक्ता और कपड़ा निर्यातक है।