भारत की ओर से 50 साल में नेट जीरो इकोनॉमी और अक्षय ऊर्जा क्षमता में 500 गीगावॉट की वृद्धि के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य की घोषणा के महज एक महीने बाद दो रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि देश में कोयले की प्रमुख भूमिका बनी रहेगी और इस दशक में कोयले की वैश्विक मांग में भारत अहम भूमिका निभाएगा।
केंद्र सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने भारत में कोयले की मांग पर अपनी हाल की रिपोर्ट में कहा है कि 2030 तक भारत में कोयले की मांग 119.2 से 132.5 करोड़ टन के बीच होगी, जिसमें मुख्य रूप से मांग बिजली क्षेत्र से आएगी। इंटरनैशनल एनर्जी एजेंसी ने अपनी सालाना कोयला रिपोर्ट में कहा है कि मजबूत आर्थिक वृद्धि और विद्युतीकरण बढऩे से हर साल कोयले की मांग में 4 प्रतिशत की वृद्धि होगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कोयले पर आधारित बिजली उत्पादन क्षमता इस दशक के अंत तक या इसके तुरंत बाद 250 गीगावॉट के उच्च स्तर तक पहुंच सकती है। इसमें कहा गया है कि कोयला आधारित बिजली उत्पादन कुछ साल उच्च स्तर पर रहने के बाद 2040 से कम होने लगेगा।
वहीं दूसरी तरफ आईईए ने कहा कि जहां औद्योगिक मकसद से कोयले का इस्तेमाल होता है, जैसे लौह और स्टील उत्पादन का क्षेत्र, वहां ऐसी तकनीक नहीं है कि कम अवधि में कोयले का इस्तेमाल खत्म किया जा सके, जिसकी वजह से आगे कोयले की मांग और बढ़ेगी।
आईईए के कोल-2021 रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत में कोयले की बढ़ती मांग के कारण 2021 और 2024 के बीच 13 करोड़ टन कोयले की मांग बढ़ेगी। भारत की अर्थव्यवस्था में 2022 से 2024 के बीच 7.4 प्रतिशत की दर से वृद्धि की उम्मीद है, जिसका असर कोयले की मांग पर पड़ेगा। हमारा अनुमान है कि कोयले की खपत में सालाना 3.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी और यह 2024 तक 118.5 करोड़ टन पहुंच जाएगा।’
