खरीफ का सीजन शुरू होने से भारत अंतरराष्ट्रीय बाजार से उर्वरकों की आपूर्ति के लिए मशक्कत कर रहा है। भारत आपूर्ति का स्थिर प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए खास तौर पर मोरक्को और लैटिन अमेरिकी देशों के साथ दीर्घकालिक अनुबंधों पर हस्ताक्षर करने की तैयारी में है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा ‘जहां भी उर्वरक उपलब्ध हों, हमें वहां से उर्वरकों लेने होंगे, क्योंकि फसलों को सुरक्षित रखना होगा। हम मोरक्को के साथ-साथ लैटिन अमेरिकी देशों के साथ भी दीर्घकालिक अनुबंध करने के लिए तैयार हैं। दिक्कत यह है कि दाम बहुत ज्यादा हैं।’
भारतीय उपमहाद्वीप में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की शुरुआत के साथ ही खरीफ फसल का सीजन शुरू हो जाता है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार मॉनसून अपनी सामान्य शुरुआत की तारीख 1 जून से तीन दिन पहले रविवार को केरल में दस्तक दे चुका है।
पिछले महीने मौसम विभाग ने कहा था कि मॉनसून वर्ष 2022 में दीर्घावधि के औसत (एलपीए) के 99 प्रतिशत स्तर पर सामान्य रह सकता है।
भारत उर्वरकों की अपनी जरूरत पूरी करने के लिए काफी हद तक विदेशों पर निर्भर रहता है। देश अपनी कुल आवश्यकता का लगभग एक-चौथाई भाग और पोटाश तथा फॉस्फेट का 100 प्रतिशत आयात
करता है। जहां एक ओर कोविड से अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरक के दामों में खासा इजाफा हुआ, वहीं दूसरी ओर रूस-यूक्रेन युद्ध ने हालात और बिगाड़ दिए। गैस के अधिक दामों और प्रमुख कच्चे माल के साथ-साथ तैयार उत्पादों की कमी के कारण ऐसा हुआ है।
शनिवार को गुजरात में एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जहां 50 किलोग्राम यूरिया का आयात 3,500 रुपये की दर पर किया जाता है, वहीं केंद्र इसे किसानों को 300 रुपये की दर पर बेचता है, जिसमें सरकार इसका अंतर वहन करती है।
