आयातकों ने गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय से गुजरात उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ सरकार की याचिका को रद्द करने का आग्रह किया, जिसमें समुद्री माल ढुलाई पर एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (आईजीएसटी) को संविधान का उल्लंघन करने वाला घोषित किया गया था।
समुद्री माल ढुलाई भारत में माल भेजने के लिए दो विदेशी पक्षों के बीच किसी समझौते के माध्यम से व्यय की जाने वाली लागत होती है। उदाहरण के लिए अगर माल का वाशिंगटन से निर्यात किया जाता है, तो संबंधित निर्यातक वहां की किसी शिपिंग लाइन के साथ करार कर सकता है और उसे समुद्री माल ढुलाई का भुगतान कर सकता है।
केंद्रीय जीएसटी अधिनियम के एक प्रावधान में भारत में लाए गए माल की लागत, बीमा और माल ढुलाई (सीआईएफ) के मूल्य पर मूल सीमा शुल्क और आईजीएसटी दोनों की वसूली की अनुमति दी हुई है। बाद में एक सरकारी अधिसूचना में उलट शुल्क व्यवस्था से आयातकों के लिए समुद्री माल ढुलाई पर आईजीएसटी में विस्तार कर दिया गया था। जीएसटी के तहत आम तौर पर सेवा कर का सेवाओं के विके्रताओं द्वारा भुगतान किया जाता है, लेकिन जहां सरकार के लिए विक्रेताओं से कर प्राप्त करना मुश्किल होता है, वहां वह इसे सेवाओं के प्राप्तकर्ताओं पर लगाती है। इसे उलट शुल्क व्यस्था कहा जाता है।
कंपनियों की तरफ से तर्क देते हुए खेतान ऐंड कंपनी के साझेदार अभिषेक रस्तोगी ने कहा कि भारतीय आयातक जीएसटी अधिनियम के तहत प्राप्तकर्ता की परिभाषा में नहीं आएंगे, क्योंकि भारत के बाहर स्थित माल के निर्यातक विदेशी शिपिंग लाइन को समुद्री माल ढुलाई का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
उन्होंने कहा कि केवल उसी प्राप्तकर्ता पर उन सेवाओं की देनदारी पर कर का बोझ डाला जा सकता है, जिन पर जीएसटी लगता है। गुजरात पेट्रोकेम कंपनियां सर्वोच्च न्यायालय में मामले की प्रतिवादी हैं। दूसरी ओर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एन वेंकटरमन ने तर्क दिया है कि यह शुल्क क्षेत्र के बाहर नहीं है और यह दोहरे कराधान का मामला नहीं है।
पिछले साल, गुजरात उच्च न्यायालय ने समुद्री माल ढुलाई पर आईजीएसटी लगाने को संविधान का उल्लंघन घोषित किया था। अदालत ने कहा था कि समुद्री माल ढुलाई पर शुल्क लगाने और कर संग्रह करने की कानून के तहत अनुमति नहीं है।
