भारत में बिजली की मांग कुछ दिन पहले बढ़कर रिकॉर्ड 203 गीगावॉट पर पहुंच गई। हवा के गर्म थपेड़ों और अर्थव्यवस्था के खुलने की वजह से बिजली की मांग बढ़ी है। यह ऐसे समय में हुआ है, जब पिछले कुछ साल के दौरान घरेलू कोयले की कमी की वजह से केंद्र सरकार आयातित कोयले पर जोर दे रही है। वहीं 10,000 रुपये प्रति टन के भाव आयातित कोयले को लेकर तैयारी न होने के कारण इसका दबाव पूरी आपूर्ति शृंखला पर पड़ रहा है। एक तरफ जहां सरकारी बिजली वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) वित्तीय दबाव में हैं और कोयला आयात के पक्ष में नहीं हैं, वहीं घरेलू कोयले की उपलब्धता और आपूर्ति पर दबाव है। रेलवे का बुनियादी ढांचा भी इस मामले में कमजोर नजर आ रहा है।
भारत में चल रहे कोयले पर आधारित बिजली संयंत्रों में करीब 81 प्रतिशत खदानों से दूर (500 किलोमीटर और इससे ज्यादा) हैं। दिल्ली के एक विश्लेषक ने कहा कि आदर्श रूप में देखें तो किसी भी देश में ताप बिजली संयंत्र खदानों से सटे होते हैं, वहीं भारत में इसका उल्टा है। उन्होंने कहा, ‘चाहे राजनीतिक बाध्यता हो या निजी निवेश, कोयला खदान से 500 से लेकर 1000 किलोमीटर दूर बिजली संयंत्र होने की कोई तार्किकता नहीं दिखती।’
इस ऐतिहासिक गलती की वजह से भारतीय रेलवे को इस साल यात्री ट्रेन रद्द करनी पड़ीं, जिससे कि पूर्वी इलाके का कोयला उत्तर और पूर्व की ओर स्थित संयंत्रों तक पहुंचाया जा सके। पिछले 26 दिन के दौरान रेलवे ने 42 ट्रेन की 1,053 ट्रिप रद्द की है, जिनमें ज्यादातर दक्षिण पूर्व और मध्य जोन की हैं। इसका मसकद ट्रैक को खाली करना और ढुलाई का वक्त बचाना है, जिससे कि आपूर्ति बाधित न हो।
रेलवे के एक अधिकारी ने कहा, ‘इस साल बिजली की मांग बढ़ी है और रेलवे ने दूर के बिजली संयंत्रों को ज्यादा आपूर्ति की है क्योंकि खदानों के नजदीक वाले संयंत्र बिजली की मांग पूरी करने में सक्षम नहीं थे। इसकी वजह से प्रति महीने कोयले की ढुलाई की औसत दूरी बढ़ी है। आदर्श रूप से हम कम दूरी की आपूर्ति चाहते हैं क्योंकि लंबी दूरी का मतलब होता है कि हमारा वैगन टर्न राउंड (डब्ल्यूटीआर) ज्यादा होगा।’
ट्रैक कंजेशन और देरी की वजह से मालगाड़ियों की मौजूदा औसत रफ्तार 18.8 किलोमीटर प्रति घंटे है। कोयले की कमी होने से उपजे संकट के कारण देश में कोयले की आपूर्ति करने वाली सबसे बड़ी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की आलोचना हो रही है। उत्पादन में बढ़ोतरी के बावजूद मांग का सही अनुमान न होने और डिस्कॉम के भुगतान में देरी के कारण आपूर्ति शृंखला पर दबाव है।
इक्रा लिमिटेड के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट सब्यसाची मजूमदार ने कहा कि पिछले 5 साल से सीआईएल के कोयला उत्पादन की वृद्धि दर में कमी आई है और इसका सीएजीआर 2.4 प्रतिशत रहा है।
मजूमदार ने कहा, ‘बिजली की मांग में तेज बढ़ोतरी, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयला महंगा होने के कारण आयातित कोयला आधारित संयंत्रों के कम इस्तेमाल सहित कई वजहें हैं, जिससे समस्या आई है।’
देश में आयातित कोयले पर आधारित 17 गीगावॉट क्षमता के संयंत्र बंद रहे, जिससे घरेलू कोयला आधारित संयंत्रों पर दबाव बढ़ा है।
