सरकार ने विशिष्ट लौह एवं इस्पात उत्पादों पर पांच प्रतिशत आयात शुल्क फिर से लगाने की घोषणा की गई है।
घरेलू उद्योग को सस्ते विशेषकर चीन से सस्ते आयात से बचाने के लिए यह कदम उठाया गया है। यह आयात शुल्क पिग आयरन, सेमी फिनिश्ड, फ्लैट तथा लंबी श्रेणी के उत्पादों पर लगाया गया है।
सरकार ने मुद्रास्फीति पर नियंत्रण के उपायों के तहत अप्रैल में आयात शुल्क को वापस ले लिया था। घरेलू इस्पात उद्योग सस्ते आयात और घरेलू कीमतों में आ रही गिरावट को कम करने के लिए 10 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने की मांग करता आ रहा था।
उसका कहना था कि सस्ते इस्पात के आयात से उसकी बिक्री में कमी आ रही है। अग्रणी स्टील कंपनियां जैसे स्टील अथॅरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) तथा जेएसडब्ल्यू इस्पात की खपत की मांग में 25 से 30 प्रतिशत की कमी देखने को मिली।
हालांकि, औद्योगिक विशेषज्ञों ने कहा कि आयात शुल्क सस्ते आयात से कोई राहत दिलाने नहीं जा रहा है। यूक्रेन और चीन की कंपनियां 430 डॉलर से 440 डॉलर प्रति टन पर इस्पात की पेशकश कर रही हैं और बड़े पैमाने पर उन्हें ठेके भी मिल रहे हैं।
वर्तमान डॉलर विनिमय दरों पर इसकी कीमत 21,300 रुपये से 21,800 रुपये के बीच बैठती है। खपत वाली जगह पर पहुंचने के बाद इसकी कीमत लगभग 23,300 रुपये से 23,800 रुपये के बीच हो जाती है (इसमें पोर्ट क्लियरिंग और माल भाड़ा शुल्क भी शामिल है)।
दूसरी तरफ घरेलू इस्पात की कीमतें 34,000 रुपये प्रति टन (एक्स-मिल) हैं। कारोबारी सूत्रों ने बताया कि 5 प्रतिशत का शुल्क लगाए जाने के बाद आयातित इस्पात की कीमतों में लगभग 1,100 रुपये प्रति टन की बढ़ोतरी होगी जबकि आयातित और घरेलू इस्पात की कीमतों में लगभग 10,000 रुपये प्रति टन का अंतर है।
कारोबारी सूत्रों ने बताया, ‘आयात शुल्क लगा कर सरकार ने उद्योग की मांग मान ली है, यद्यपि यह आंशिक है, साथ ही सस्ते आयात का जारी रहना भी सुनिश्चित किया है।’ घरेलू इस्पात उत्पदकों ने इस महीने की शुरुआत में कीमतों में 12 से 14 प्रतिशत या 5,000 रुपये से 5,500 रुपये प्रति टन की कमी की थी ताकि बिक्री बढ़ाई जा सके।
लेकिन, परिस्थितियों में सुधार नहीं होता देख कर इस्पात उत्पादकों को एक बार फिर कीमतों को घटाना पड़ सकता है।