केंद्र सरकार ने घरेलू कोयले की आपूर्ति में कमी का हवाला देते हुए ताप बिजली उत्पादकों से कहा है कि वे इस्तेमाल होने वाले कोयले में मिलाने के लिए कम से कम 10 फीसदी कोयले का आयात करे। यह सरकार के उस निर्देश से एकदम उलटा है, जिसमें उसने देश में निकले कोयले का उपयोग करने को कहा था। केंद्र ने आरोप भी लगाया कि कई राज्य केंद्रीय उत्पादक संयंत्रों से मिलने वाली बिजली का कुछ हिस्सा ज्यादा कीमत पर पावर एक्सचेंजों पर बेच रहे हैं। सरकार ने कहा कि ऐसा करने वाले राज्यों पर जुर्माना लगाया जाएगा। केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने किसी राज्य का नाम लिए बिना यह चेतावनी जारी की है।
दिलचस्प है कि कोयला और बिजली मंत्रियों द्वारा घरेलू कोयले की किल्लत से इनकार करने के दो दिन बाद ही मिश्रण के लिए आयातित कोयले के उपयोग के निर्देश दिए गए। अधिसूचना में कहा गया है, ‘तकनीकी रूप से संभव हो तो घरेलू कोयले पर चलने वाले बिजली संयंत्र 10 फीसदी आयातित कोयला मिलाएं ताकि देश में बिजली की बढ़ी मांग पूरी की जा सके। बिजली उत्पादक कंपनियां कोयले के आयात की प्रक्रिया में तेजी लाएंगी।’
बिजली मंत्रालय ने कहा कि अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है, जिससे बिजली की मांग और खपत में अप्रत्याशित इजाफा हुआ है।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के ईंधन प्रबंधन प्रकोष्ठ ने एक नोटिस में कहा, ‘कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों की कुल उत्पादन में हिस्सेदारी अगस्त-सितंबर के दौरान 66 फीसदी हो गई, जो 2019 में 62 फीसदी ही थी। इसी वजह से इस दौरान कोयले की खपत भी 18 फीसदी बढ़ी है। हालांकि कोल इंडिया से कोयले की आपूर्ति उतनी नहीं बढ़ पाई है, जिससे बढ़ी मांग की भरपाई हो सके।’ इसमें आगे कहा गया कि बिजली संयंत्रों के पास कोयले का भंडार तेजी से घटा है और इस समय उनके पास 73 लाख टन कोयला है।
अगस्त में कोयले की आपूर्ति में कमी के साथ जब यह संकट शुरू हुआ था तो केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने बिजली उत्पादकों से कोयले का आयात करने पर विचार करने की अपील की थी। मगर केवल एनटीपीसी ने 20 लाख टन कोयले का आयात किया था।
केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत कोयले का आयात कम करने का निर्णय किया है। फरवरी 2020 में जारी प्रेस विज्ञप्ति में केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा था कि भारत 2023-24 तक कोयला आयात पूरी तरह बंद कर देगा। नवंबर 2020 में बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में जोशी ने कहा था कि सरकार ने कोयले का आयात नहीं करने का निर्णय किया है और राज्यों तथा केंद्र को इस दिशा में साथ मिलकर काम करना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘भारी भंडार होने के बावजूद 2018-19 में हमने कोयले के आयात पर करीब 2.40 लाख करोड़ रुपये खर्च किए। कोल इंडिया जमीन और पुनर्वास पर खर्च कर रही है। लोगों को रोजगार दे रही है और भू-मालिकों को मुआवजा दे रही है। कोई भी राज्य या केंद्र सरकार या अन्य एजेंसी इतना रोजगार नहीं दे सकती। ऐसे में सवाल उठता है कि हमें कोयले का आयात क्यों करना चाहिए और घरेलू स्तर पर इसकी खरीद क्यों नहीं की जानी चाहिए।’
केंद्र सरकार ने 2017-18 में कोयले का आयात बंद करने का प्रयास किया था, लेकिन ताप संयंत्रों में कोयले की कमी को देखते हुए आयात फिर से शुरू करना पड़ा था।
सितंबर 2018 में ताप संयंत्रों के पास कोयले का भंडार 5 दिन से भी कम हो गया था। कई राज्यों ने आपूर्ति में कमी की शिकायत की थी। तीन साल बाद यह स्थिति फिर से पैदा हो गई। इस समय 16.8 गीगावाट क्षमता के पास एक भी दिन का कोयला नहीं बचा है और 25 गीगावाट क्षमता के पास तीन दिन से भी कम का कोयला भंडार है।
कोयले की आपूर्ति घटने और बिजली की कटौती से कई पावर डिस्कॉम घबराहट में हाजिर बाजार से बिजली खरीद रहे हैं, जिससे हाजिर बाजार में बिजली के दाम 20 रुपये प्रति यूनिट तक पहुंच गए। मगर बिजली मंत्रालय इसके लिए राज्यों को जिम्मेदार ठहरा रहा है। मंत्रालय ने बयान में कहा, ‘कुछ राज्य अपने उपभोक्ताओं को बिजली की आपूर्ति नहीं कर रहे हैं और कुछ इलाकों में बिजली कटौती की जा रही है। दूसरी ओर वे बिजली एक्सचेंजों पर महंगी कीमत में बिजली बेच रहे हैं।’
यह बयान उस संदर्भ में दिया गया है कि केंद्रीय उत्पादक स्टेशनों से 15 फीसदी बिजली बिना आवंटन के रखी जाती है। यह बिजली जरूरत के हिसाब से केंद्र सरकार राज्यों को देती है। बयान में कहा गया है, ‘राज्यों से बिना आवंटित बिजली की आपूर्ति राज्य के उपभोक्ताओं को करने का आग्रह किया गया है। अधिशेष बिजली की स्थिति में राज्य को इस बारे में सूचित करना होगा ताकि उसे अन्य जरूरतमंद राज्यों को दिया जा सके। अगर कोई राज्य बिजली एक्सचेंज पर बिजली की बिक्री करते पाया जाता है तो उनकी अनावंटित बिजली कम कर दी जाएगी या वापस ले ली जाएगी ताकि उसे दूसरे राज्य को दिया जा सके।’
