वैश्विक तापमान में वृद्धि की मार अब उत्तर प्रदेश के अमरूद किसानों और थोक कारोबारियों पर पड़ने लगी है।
कानपुर और आसपास के 10 हजार से अधिक किसानों को इस साल अमरूद के समय से पहले पकने से खासा नुकसान हुआ है। ईश्वरीगंज और प्रतापपुर में हजारों एकड़ में फैली अमरूद की खेती गर्मी बढ़ने से प्रभावित हुई है। गर्मी बढ़ने से फल समय से पहले ही पकने लगे हैं, जिसके चलते बाजार में अमरूद की आवक खूब बढ़ी है। ऐसे में इसकी कीमत औंधे मुंह लुढ़की है।
पिछले साल इस समय एक क्विंटल अमरूद की कीमत 450 रुपये थी, पर इस साल महज 50 रुपये में ही एक क्विंटल अमरूद मिल रहे हैं। सामान्य स्थितियों में, इस समय तक बाजार में कुल उपज का केवल 30 से 40 फीसदी अमरूद ही बाजार में आ पाता था।
लेकिन इस बार नवंबर के शुरू होते-होते कुल उत्पादन का करीब 80 फीसदी अमरूद बाजार में बेच दिया गया है। अमरूद के थोक कारोबारी इसके लिए दिन का तापमान बढ़ने को जिम्मेदार मानते हैं।
कानपुर वेजिटेबल एंड फ्रूट्स मचर्ट्स एसोसिएशन (केवीएफएमए) के सदस्य राघवेंद्र सिंह कहते हैं कि हमने किसानों से उनकी फसल बेचने का समझौता किया था।
लेकिन मौसम के बदले हालात ने सबकुछ उलट-पुलट कर रख दिया। उम्मीद नहीं थी कि मौसम ऐसी करवट लेगा। राघवेंद्र के अनुसार, जिन बागान को 2 से 3 लाख रुपये में खरीदा गया था उससे केवल 20 से 30 हजार रुपये के अमरूद ही बिक पाए। इस तरह इस बार लागत का महज 10 फीसदी ही निकल पाया है।
इनके मुताबिक, क्षमता से अधिक नुकसान होते हुए भी उन्हें उठाना पड़ रहा है क्योंकि वे कानूनी प्रावधान से बंधे हैं। सिंह के मुताबिक, सही समय पर मानसून आने और पर्याप्त बारिश से उम्मीद की जा रही थी कि इस बार अमरूद की फसल काफी बेहतर रहेगी पर गर्मी में हुई बढ़ोतरी ने सबकुछ चौपट कर के रख दिया।
समस्या यहीं खत्म नहीं होती। अमरूद का बाजार भाव अभी भी 6 से 8 रुपये प्रति किलो के आसपास है। किसानों और उपभोक्ताओं की कीमत पर मुनाफा बिचौलियों को हो रहा है। इस बीच किसानों के नेता मांग कर रहे हैं कि सरकार अमरूद की खेती में अपने हाथ जला चुके किसानों को आसान शर्तों पर ऋण मुहैया कराए।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश देश के बड़े अमरूद उत्पादक राज्यों में तीसरे नंबर पर आता है। इससे ऊपर केवल बिहार और आंध्र प्रदेश ही है। लेकिन इस साल फलों की खराब गुणवत्ता से इसका निर्यात प्रभावित हुआ है। पिछले साल पड़ोसी राज्यों हरियाणा, दिल्ली और मध्य प्रदेश में 50-60 ट्रक से अधिक अमरूद भेजे गए थे, पर इस साल केवल 15-16 ट्रक अमरूद ही इन राज्यों में भेजे गए।
ज्यादातर उपज को तो स्थानीय स्तर पर ही खपा दिया गया। सिंह के अनुसार, इसकी मुख्य वजह भंडारण क्षमता का तेजी से गिरना है। सूत्रों के मुताबिक, पिछले पांच साल में अमरूद के किसानों को कई बार फल की कम कीमत से नुकसान उठाना पड़ा है। हालत तो इतनी खराब हुई कि किसानों के लिए उनके कुल निवेश का 25 फीसदी भी निकाल पाना मुश्किल हो गया।
राम अवतार नामक एक किसान ने बताया कि यदि सरकार ने हमारी मदद नहीं कि तो हमलोग अमरूद उगाना छोड़ देंगे। अमरूद के बागानों को काट हमलोग धान और गेहूं का रुख कर सकते हैं।